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अमर शहीद मंगल पांडे: 1857 की क्रांति के अग्रदूत और बलिया की बागी धरती

बलिया को 'बागी धरती' यूं ही नहीं कहा जाता। आजादी की लड़ाई में बलिया ने 1857 से ही विप्लव, साहस और संघर्ष का जो परिचय दिया, वह 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में अपने चरम पर पहुंच गया। 21 अगस्त 1942 को बलिया देश का पहला जिला बना, जो अंग्रेजों के शासन से मुक्त हो गया। लेकिन इस विद्रोह की नींव अमर शहीद मंगल पांडे ने 1857 में ही रख दी थी।
मंगल पांडे का जन्म और पारिवारिक पृष्ठभूमि
सेना में भर्ती और वीरता
18 वर्ष की उम्र में मंगल पांडे अंग्रेजी सेना में भर्ती हुए। वे 34वीं नेटिव इन्फैंट्री (बैरकपुर, बंगाल) में तैनात थे। उनकी निडरता और अनुशासन के लिए अंग्रेज भी उनकी तारीफ करते थे। अंग्रेज लेखक डब्ल्यू.टी. फिशेट ने लिखा, "मंगल पांडे में एक सच्चे सैनिक के सभी गुण थे। वे इतने साहसी थे कि अपनी मृत्यु को भी शांति से स्वीकार करने की क्षमता रखते थे।"
क्रांति की ज्वाला कैसे भड़की
31 जनवरी 1857 को मंगल पांडे जब पानी लेने जा रहे थे, तो एक खलासी (संभावित रूप से भंगी जाति का व्यक्ति) ने उनसे पानी मांगा। मंगल पांडे ने इसे अस्वीकार कर दिया। खलासी ने व्यंग्य कसते हुए कहा—
"तुम्हें अपनी जाति का बड़ा घमंड है। लेकिन देखते हैं जब अंग्रेज तुम्हें गाय और सूअर की चर्बी से बनी कारतूस काटने के लिए कहेंगे, तब तुम अपनी जाति कैसे बचाओगे?"
इस बात ने मंगल पांडे को झकझोर दिया। जल्द ही यह खबर आग की तरह फैल गई कि कारतूसों को दांत से काटने पर हिंदू-मुसलमानों दोनों की धार्मिक आस्थाएं भंग हो जाएंगी। अंग्रेजों ने इस पर ध्यान नहीं दिया, जिससे सैनिकों में भारी आक्रोश फैल गया।
1857 का विद्रोह: मंगल पांडे की वीरता
29 मार्च 1857 को, मंगल पांडे पूरी तैयारी के साथ परेड मैदान में पहुंचे और सैनिकों को ललकारते हुए बोले—
"भाइयों, बाहर आओ, मेरे साथ चलो, अंग्रेजों को मार भगाओ!"
उनके इस आह्वान से अंग्रेजों के खेमे में खलबली मच गई। लेफ्टिनेंट ह्यूसन और लेफ्टिनेंट बाग मंगल पांडे को पकड़ने दौड़े, लेकिन मंगल पांडे ने अपनी बंदूक से बाग और ह्यूसन को मार गिराया।
इसके बाद ब्रिटिश सेना के कर्नल हियर्सी मौके पर पहुंचे और सैनिकों को आदेश दिया कि मंगल पांडे को गिरफ्तार किया जाए। लेकिन किसी भी भारतीय सैनिक ने उनकी बात नहीं मानी।
मंगल पांडे की शहादत
जब मंगल पांडे ने देखा कि कोई सैनिक उनका साथ नहीं दे रहा, तो उन्होंने स्वयं को गोली मार ली, जिससे वे गंभीर रूप से घायल हो गए। इसके बाद उनका कोर्ट मार्शल हुआ और 8 अप्रैल 1857 को बैरकपुर में उन्हें फांसी दे दी गई।
दिलचस्प बात यह है कि मंगल पांडे को फांसी 18 अप्रैल को दी जानी थी, लेकिन अंग्रेज उनसे इतने डरे हुए थे कि 10 दिन पहले ही उन्हें गोपनीय तरीके से फांसी पर लटका दिया गया।
1857 की क्रांति का प्रभाव
मंगल पांडे की शहादत के बाद अंग्रेजों ने 19वीं रेजीमेंट को भंग कर दिया और उनकी 34वीं नेटिव इन्फैंट्री को 4 मई 1857 को समाप्त कर दिया। लेकिन इससे विद्रोह और भड़क उठा। 10 मई 1857 को मेरठ से संग्राम शुरू हुआ और पूरे भारत में फैल गया।
अंग्रेजों का प्रोपेगेंडा
कुछ अंग्रेज इतिहासकारों ने यह अफवाह फैलाई कि मंगल पांडे भांग और गांजे के नशे में थे, लेकिन यह सच्चाई से कोसों दूर था। जैसा कि लेखक दुर्गा प्रसाद गुप्त लिखते हैं—
"गांजा और भांग पीने वाले लोग तलवार और बंदूक से नहीं खेलते। मंगल पांडे का नशा केवल देशभक्ति और धर्म रक्षा का था।"
मंगल पांडे: विद्रोह का प्रतीक
अंग्रेज 1857 की क्रांति को "मंगल पांडे की बगावत" मानते थे। यही कारण था कि ब्रिटिश अधिकारी भारतीय विद्रोही सैनिकों को 'पांडीज' कहने लगे।
मंगल पांडे ने न केवल 1857 की क्रांति की नींव रखी, बल्कि वे भारत के पहले शहीद भी बने। उनकी शहादत ने संपूर्ण भारत में स्वतंत्रता संग्राम की ज्वाला भड़का दी, जो अंततः 1947 में भारत की आज़ादी का कारण बनी।
जय हिंद!