बरेली: पुलिस के कड़े पहरे में निकला जुलूस-ए-गौसिया, गूंजती रहीं 'या गौस' की सदाएं

बरेली: कड़ी सुरक्षा के बीच ग्यारहवीं शरीफ के मौके पर बड़े पीर शेख अब्दुल कादिर जिलानी बगदादी यानी गौस-ए-पाक की याद में मंगलवार को सैलानी रजा चौक से भव्य जुलूस-ए-गौसिया का निकाला गया। दरगाह प्रमुख मौलाना सुब्हानी मियां की सरपरस्ती और सज्जादानशीन मुफ्ती अहसन मियां की कयादत में जुलूस का आगाज हुआ। अंजुमन गौस-ओ-रजा व टीटीएस के बैनर तले रंग-बिरंगी पोशाकों में सजी अंजुमनों ने शिरकत की।

जुलूस के दौरान अंजुमनों ने "या गौस" की सदाएं बुलंद करते हुए गौस-ए-पाक की करामात और इस्लाम के सिद्धांतों के बारे में बताया। आयोजक हाजी शारिक नूरी, मुस्तफा नूरी, अफजलुद्दीन, वामिक रजा, जमन रजा आदि ने कायद-ए-जुलूस मुफ्ती अहसन मियां और अल्हाज मोहसिन हसन खान की दस्तारबंदी की और फूलों से स्वागत किया। इस अवसर पर मुफ्ती अहसन मियां ने अंजुमन गौस-ओ-रजा परचम कमेटी के सैयद बिलाल अली को गौसिया परचम सौंपकर जुलूस को रवाना किया। जुलूस के दौरान व्यवस्था का जिम्मा अंजुमन के सचिव अजमल नूरी, औरंगजेब नूरी, वसीम तहसीनी, तनवीर तहसीनी, नासिर कुरैशी, परवेज नूरी, अफजाल उद्दीन, जमाल खान और अन्य सदस्यों ने बखूबी संभाला। वहीं भारी पुलिस बल के साथ तमाम अफसर भी मौजूद रहे।

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धार्मिक और आध्यात्मिक संदेश
जुलूस से से पहले मुफ्ती अजहर रजा ने तिलावत-ए-कुरान से महफिल का आगाज किया, जिसके बाद मुफ्ती बशीर उल कादरी और मौलाना जाहिद रजा ने गौस-ए-पाक की करामात के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि शेख अब्दुल कादिर बगदादी ने हमें सिखाया कि कितनी भी बड़ी मुश्किल क्यों न आ जाए, सच और सब्र का दामन नहीं छोड़ना चाहिए। इस्लाम की सच्चाई और अल्लाह और उसके रसूल के बताए मार्ग पर चलते हुए, हर हाल में जुल्म से बचने और न किसी पर जुल्म करने का संदेश दिया। इस मौके पर नातख्वा आजम तहसीनी ने नात-ओ-मनकबत का नजराना पेश किया, जबकि जुलूस का संचालन मुस्तफा नूरी ने किया। जुलूस शुरू होने से पहले उन्होंने आला हजरत के शेर "ये दिल ये जिगर ये आंखे ये सिर जहां चाहो रखों कदम गौसे आज़म" पढ़ा। 

रास्तों में भव्य स्वागत
जुलूस अपने परंपरागत रास्तों रास्ते सैलानी रजा चौक, मुन्ना खान का नीम, साजन पैलेस, जगतपुर के मार्गों से होते हुए दरगाह शाहदाना वली पहुंचा और हाजिरी दी। सुबह के समय जुलूस आयोजक हाजी शारिक नूरी के आवास पर एक महफिल भी सजाई गई, जिसमें कुरानख्वानी और नात-ओ-मनकबत का नजराना मौलाना निजामुद्दीन नूरी, मौलाना बिलाल रजा और हाफिज फुरकान रजा द्वारा पेश किया गया। इसके बाद तोशा शरीफ की फातिहा हुई।

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