आत्मज्ञान क्यों है आवश्यक?

१२ अगस्त  २०२५ मंगलवार

ऋषि चिंतन

👉"आत्मा" को क्यों खोजना चाहिए और उसकी ही जिज्ञासा क्यों करनी चाहिए ? इसका उत्तर यही है कि संसार का वास्तविक तत्त्व "आत्मा" ही है। जो जरा-मरण से रहित शोक से मुक्त, नित्य और अविनाशी है। उसका ज्ञान हो जाने से मनुष्य उसी की भाँति ही भय, शोक, चिंता और मरण धर्म से मुक्त हो जाता है। अजर और अमर होकर संसार के लोगों एवं अनुभवों से ऊपर उठकर चिर अविनाशी पद प्राप्त कर लेता है। इस नाशवान मानव जीवन की इससे बड़ी और इससे ऊँची उपलब्धि अन्य क्या हो सकती है ?
👉मनुष्य एक ऐसा "आनंद" प्राप्त करना चाहता है, जो सत्य, अपरिवर्तनशील और अविनाशी हो। संसार के क्षणभंगुर सुखों का उपभोग करने से उसकी यह प्यास पूरी नहीं होती। अपितु इन उपभोगों से उनकी प्यास और भी बढ़ जाती है। उसे अंत में अशांति और असंतोष का भागी बनना पड़ता है। इन्हीं नश्वर और मिथ्या भोगों में आनंद की खोज करता-करता, वह जरा को प्राप्त करता है और फिर मृत्यु को। सारा बहुमूल्य जीवन यों ही व्यर्थ में चला जाता है। *इसी अवधि में वांछित आनंद की निधि "आत्मा" की खोज कर ली जाए, तब न तो जरा का भय रहे और न मृत्यु का। मनुष्य जीवन में भी उस शाश्वत आनंद को पाता रहे और उसके बाद तो वह परमानंदस्वरूप ही हो जाए।
👉हम सब जीवन में नाना प्रकार की संपत्ति, नाना प्रकार के पदार्थ, ऐश्वर्य, साधन, उपकरण तथा वैभव आदि एकत्र करते हैं। इस संग्रह में निश्चय ही एक उद्देश्य होता है। यह पुरुषार्थ यों ही किसी पागलपन से प्रेरित होकर नहीं किया जाता और न यह सब संस्कार अथवा अभ्यासवश किया जाता है। इसके पीछे एक उद्देश्य, एक मंतव्य रहता है। वह मंतव्य क्या होता है ? वह होता है "आनंद की खोज।" हम सबको यह भ्रम रहता है कि यदि हम किसी भाँति वैभवशाली बन जाएँ, हमारे पास धन-संपत्ति की बहुतायत हो जाए तो हम अवश्य सुखी हो जाएँ। हमारे लिए आनंद की कमी न रहे। किंतु क्या हमारा यह उद्देश्य पूरा हो पाता है? नहीं, निश्चित रूप से नहीं।
👉यदि धन-संपत्ति और वैभव-विभूति से ही आनंद के उद्देश्य की पूर्ति हो सकी होती, तो इस विशाल संसार में न जाने कितने धन-कुबेर पड़े हैं। ऐसे-ऐसे धनवान इस धराधाम पर मौजूद हैं जिनके धन-वैभव की कोई गणना, कोई परिमाण नहीं है। जिनकी नित्यप्रति करोड़ों की आय है और जिनका आर्थिक साम्राज्य देश-देशांतरों में फैला पड़ा है। वे सभी सुखी और संतुष्ट होने चाहिए थे। पर देखने में ऐसा आता है कि वे भी अन्य जनसाधारण की भाँति ही आनंद के लिए लालायित रहते हैं। उस विपुल वैभव के बीच भी रोते-कलपते और शोक मनाते दृष्टिगोचर हो।

यह भी पढ़े - Kanpur News: कांग्रेस का प्रदर्शन, एसआईआर की प्रतीकात्मक प्रतियां जलाईं

जीवन की सर्वोपरि आवश्यकता "आत्मज्ञान" पृष्ठ ६२
 ।।पं श्रीराम शर्मा आचार्य।।
बिजेन्द्र नाथ चौबे, गायत्री शक्तिपीठ, महावीर घाट गंगा जी मार्ग बलिया।

खबरें और भी हैं

Copyright (c) Parakh Khabar All Rights Reserved.