- Hindi News
- संपादकीय
- सीएए का विरोध
सीएए का विरोध

लंबे इंतजार और तमाम विरोध के बाद सोमवार को नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) पूरे देश में लागू कर दिया गया। वर्ष 2019 में सीएए दोनों सदनों से पास हुआ था जिसके बाद देश में जगह-जगह विरोध प्रदर्शन हुए थे। दिल्ली के शाहीन बाग में कई महीने तक धरना प्रदर्शन चला था।
वहीं तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन भी कानून का विरोध करते हुए इसको राज्य में न लागू करने की बात कह रहे हैं। कांग्रेस का आरोप है कि भाजपा लोकसभा चुनाव में लाभ के लिए तुष्टिकरण की नीति अपना रही है। इस कानून को लागू करने से भाजपा को आगामी चुनाव में कितना फायदा मिलेगा यह तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन विपक्षी पार्टियों के विरोध के बाद सवाल उठता है कि संसद द्वारा पारित कानून को लागू न करने की बात कहना कितना सही है।
सर्वविदित है कि संसद द्वारा पारित किसी भी कानून को कोई भी राज्य सरकार राज्य में लागू होने से नहीं रोक सकती है। उसके बाद भी यह कहना कि हम राज्य में कानून लागू नहीं होने देगें, जनता को बरगलाने के सिवाय और कुछ नहीं है। केन्द्र सरकार द्वारा बार-बार इस बात का आश्वासन दिया जाता रहा है कि यह नागरिकता देने वाला कानून है न कि नागरिकता छीनने का कानून।
गौरतलब है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम के तहत बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न के शिकार गैर-मुस्लिम प्रवासियों को भारतीय नागरिकता मिल सकती है। इन देशों के हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या ईसाई समुदायों के व्यक्ति जिन्होंने 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले भारत में प्रवेश किया था, कानून के तहत नागरिकता मांग सकते हैं।
कानून का विरोध करने वालों का यह कहना है कि इस कानून में बाहर से आए मुसलमानों को नागरिकता देने का प्रावधान क्यों नहीं है? जबकि भारत की संस्कृति में ‘वसुधैव कुटुंबकम्े’ की अवधारणा रही है। यह बात सही है कि भारतीय संस्कृति समस्त धरती को अपना घर मानती आई है, लेकिन क्या यह सत्य नहीं है कि बांग्लादेश से आए रोहिंग्या मुसलमानों ने अवैध रूप से देश में कब्जा नहीं कर रखा है, जो आए दिन देश विरोधी गतिविधियों में संलग्न पाए जाते हैं।
यही स्थिति पाकिस्तान से आए लोगों की है, जो आए दिन देश की संप्रभुता व शांति को चुनौती देते हैं। देश की पार्टियों और विरोध करने वाले संगठनों को स्वहित में सोचने के बजाय देश हित सोचना चाहिए।