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श्रावण मास की द्वितीय सोमवारी पर विशेष: शिवलिंग की उत्पत्ति और उसका रहस्य

बलिया : श्रावण मास में शिवभक्तों के लिए प्रत्येक सोमवारी का विशेष महत्व होता है। इस अवसर पर शिवलिंग की पूजा-अर्चना को विशेष फलदायी माना गया है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि शिवलिंग की उत्पत्ति कैसे हुई? इसकी पूजा क्यों की जाती है? इसके पीछे कौन-सा आध्यात्मिक और पौराणिक रहस्य छिपा है? इस विषय पर स्कंध पुराण और लिंग पुराण में विस्तार से वर्णन मिलता है, जो शिवलिंग की गूढ़ महत्ता को स्पष्ट करता है।
क्या है शिवलिंग का अर्थ?
इस श्लोक में स्पष्ट किया गया है कि लिंग का अर्थ है— ओंकार का सूक्ष्म और स्थूल रूप, जो ब्रह्माण्ड की तरह असीम और अनंत है।
ब्रह्मांड को वलयाकार माना गया है, और यही स्वरूप शिवलिंग में प्रतिफलित होता है। अतः शिवलिंग न केवल शिव का प्रतीक है, बल्कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का प्रतीक भी है।
लिंग पुराण के अनुसार— "भगवान शिव अलिंग हैं", अर्थात वे निराकार और निर्गुण हैं। वहीं प्रकृति को सगुण लिंग कहा गया है, जिससे सृष्टि की रचना होती है। इस प्रकार सारा ब्रह्माण्ड शिवलिंग के रूप में ही व्याप्त है। "लय नाल्लिंगमुच्यते" के अनुसार जिसमें सृष्टि का लय या प्रलय हो, वही लिंग है।
शिवलिंग की उत्पत्ति की कथा
स्कंध पुराण के अनुसार, सृष्टि की आरंभिक अवस्था में ब्रह्मा और विष्णु के बीच श्रेष्ठता को लेकर विवाद छिड़ गया। ब्रह्मा ने स्वयं को सृष्टिकर्ता बताते हुए श्रेष्ठ ठहराया, जबकि विष्णु ने पालनकर्ता होने का दावा किया।
इसी विवाद के बीच एक दिव्य ज्योतिर्लिंग आकाश से प्रकट हुआ, जो आकाश से पाताल तक फैला हुआ था। उसका कोई आदि और अंत नहीं दिख रहा था। दोनों देवता इस अद्भुत ज्योति के रहस्य को जानने के लिए विपरीत दिशाओं में चल पड़े। वर्षों तक प्रयास के बावजूद कोई भी उसका अंत नहीं खोज सका।
विष्णु ने सत्य स्वीकार कर हार मान ली, लेकिन ब्रह्मा ने झूठ बोलते हुए दावा किया कि वे इसके छोर तक पहुँच गए हैं। इस झूठ की गवाही केतकी पुष्प ने भी दी। उसी क्षण आकाशवाणी हुई कि ब्रह्मा और केतकी दोनों असत्य बोल रहे हैं।
इसके बाद भगवान शिव त्रिशूल धारण किए हुए प्रकट हुए और दोनों देवताओं को सत्य का बोध कराया। उन्होंने कहा— मैं ही सृष्टि का मूल कारण, रचयिता और संहारकर्ता हूं। तुम दोनों मेरे ही अंश हो।
भगवान शिव ने ब्रह्मा को असत्य बोलने के लिए शाप दिया कि उनकी पूजा पृथ्वी पर नहीं होगी, और केतकी पुष्प को शिव पूजा से वंचित कर दिया गया।
शिवलिंग पूजन की शुरुआत
चूंकि भगवान शिव स्वयं ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए थे, अतः तभी से शिवलिंग पूजन की परंपरा आरंभ हुई। यह केवल मूर्ति पूजन नहीं, बल्कि उस अनंत ब्रह्म की आराधना है, जिससे सृष्टि की रचना, पालन और संहार होता है।
शिवलिंग केवल कोई प्रतीक नहीं, वह ब्रह्मांडीय चेतना का मूर्त रूप है। इसकी पूजा से त्रिदेव—ब्रह्मा, विष्णु और महेश—की एक साथ आराधना होती है। श्रावण मास की सोमवारी पर शिवलिंग पूजन करने से न केवल आध्यात्मिक शांति मिलती है, बल्कि भक्तों के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और दिव्यता का संचार होता है।
— डॉ. गणेश कुमार पाठक
पूर्व प्राचार्य एवं पूर्व शैक्षिक निदेशक
जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय, बलिया (उ.प्र.)