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जिंदगी का फलसफा सिखाते हैं कबीर के दोहे, बलिया में गूंजा 'मोको कहां ढूंढे रे बन्दे मैं तो तेरे पास में...'
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Ballia News : आज के समय में कबीर दास की प्रासंगिकता पहले से ज्यादा बढ़ गई है। आपसी भेदभाव, धार्मिक आडंबर व वैमनस्यता समाज में बढ़ती जा रही है। उसे रोकने और समाज को सही दिशा देने के लिए कबीर दास के साहित्य और उनके विचारों को जन-जन तक पहुंचाना होगा। कबीर आज भी हमारे मार्गदर्शक हैं। जाति धर्म से ऊपर उठकर उनके विचार सम्पूर्ण मानवता के लिए है। उक्त विचार कबीर साहित्य मर्मज्ञ पंडित ब्रजकिशोर त्रिवेदी ने कबीर निर्वाण दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में बतौर मुख्य वक्ता कहीं।
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