चुनाव लोकतंत्र का सबसे बड़ा उत्सव है, पर इसके जश्न में चुनौतियां भी कम नहीं

नई दिल्ली। चुनाव लोकतंत्र का सबसे बड़ा उत्सव है, पर इसके जश्न में चुनौतियां भी कम नहीं। मतदाताओं को लुभाने के लिए किए जाने वाले अव्यावहारिक वादों से निपटना तो टेढ़ी खीर बना ही हुआ है, चुनाव में बेहिसाब खर्च यानी पैसे की ताकत के इस्तेमाल का सिलसिला भी कायम है। यह धन निर्धारित सीमा से कई गुना ज्यादा होता है। यही वजह है कि चुनावी मुकाबले में अब किसी सामान्य आदमी का टिक पाना मुश्किल हो गया है।

चुनाव आयोग के सामने ये है चुनौती

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धन बल के इस्तेमाल को रोक पाना चुनाव आयोग के सामने बड़ी चुनौती है। चुनावों में धनबल के इस्तेमाल पर रोक कितनी लगी, यह कहना मुश्किल है, लेकिन इस दिशा में चुनाव आयोग की कोशिशें कुछ रंग लाती जरूर दिख रही हैं। प्रत्येक चुनाव में पिछले चुनाव अधिक धनराशि और शराब जैसी प्रलोभन वाली चीजें जब्त की जा रही हैं। दूसरी ओर, यह धन-बल के बढ़ते इस्तेमाल का संकेत भी है। उदाहरण के तौर पर देखें तो 2014 के लोकसभा चुनाव में मतदाताओं के बीच बांटने के लिए लाई गईं करीब 12 सौ करोड़ रुपये कीमत की वस्तुएं नकदी और शराब जब्त हुई थी।

2019 के चुनाव में जब्त हुई थी 3449 करोड़ की वस्तुएं व नकदी
2019 के चुनाव में 3449 करोड़ से अधिक कीमत की वस्तुएं व नकदी जब्त हुई थी, यह 2014 के मुकाबले 2248 करोड़ अधिक था। दावा तो यह भी है कि जब्त की गई यह राशि चुनावों में चोरी-छुपे खर्च होने वाली राशि का एक छोटा हिस्सा होता है। बाकी राशि तो जब्त ही नहीं हो पाती है। आयोग का मानना है कि स्वस्थ और मजबूत लोकतंत्र के लिए जरूरी है कि धनबल की जगह चुनाव में सभी के लिए एक लेवल प्लेइंग फील्ड यानी समान धरातल हो।

पहले के मुकाबले काफी सतर्क है चुनाव आयोग

चुनावों में धन बल के इस इस्तेमाल को रोकने को लेकर चुनाव आयोग अब पहले के मुकाबले काफी सतर्क है। आयोग ने पिछले चुनावों में इसे रोकने के लिए इलेक्शन एक्सपेंडिचर मॉनीटरिंग सिस्टम तैयार किया है। इसमें केंद्र और राज्य की एजेंसियां मिलकर काम करती हैं। खुफिया जानकारी भी साझा की जाती है। हाल में हुए मध्य प्रदेश, तेलंगाना सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में इसकी मदद से आयोग को बड़ी राशि पकड़ने में मदद मिली।

विधानसभा चुनाव के दौरान चुनाव आयोग को मिली थी सफलता

चुनाव आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम के विधानसभा चुनावों में करीब 1760 करोड़ कीमत की वस्तुएं, नकदी, शराब व अन्य नशीले पदार्थ जब्त किए गए। यह 2018 में इन राज्यों के चुनाव में हुई जब्ती के मुकाबले सात गुना अधिक थी। इन राज्यों में 2018 के विधानसभा चुनावों 239 करोड़ रुपये मूल्य की वस्तुएं व नकदी जब्त हुई थीं।

धन बल के इस्तेमाल पर रोक लगाना है जरूरी

आयोग का मानना है कि धन बल के इस्तेमाल पर रोक लगाना इसलिए जरूरी है, क्योंकि कोई भी आम आदमी चुनाव लड़ सके। यही वजह है कि आयोग ने चुनावी निष्पक्षता को बनाए रखने के लिए प्रत्याशियों के खर्च की सीमा तय भी कर रखी है। इसके तहत प्रत्याशी लोकसभा चुनावों में अधिकतम 95 लाख व विधानसभा चुनावों में अधिकतम 40 लाख रुपये खर्च कर सकते हैं। गोवा, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम व पुडुचेरी में लोकसभा चुनाव की अधिकतम सीमा 75 लाख ही रखी गई है।

 

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