मकर संक्रांति: शुभता और महत्व का पर्व

तिथि और समय : वर्ष 2025 में मकर संक्रांति का पर्व मंगलवार, 14 जनवरी को मनाया जाएगा। इस दिन प्रयागराज में 144 वर्षों में होने वाले महाकुंभ का श्रीगणेश होगा, और यह महाकुंभ का प्रथम शाही स्नान दिवस भी होगा।

  • सूर्य का मकर राशि में प्रवेश: 14 जनवरी, प्रातः 9:03 बजे
  • पुण्यकाल: प्रातः 9:03 बजे से सायं 5:46 बजे तक (अवधि: 8 घंटे 42 मिनट)
  • महापुण्यकाल: प्रातः 9:03 बजे से 10:48 बजे तक (अवधि: 1 घंटा 45 मिनट)

सूर्य जब एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है, तो उसे "संक्रांति" कहा जाता है। मकर संक्रांति तब होती है जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है।

मकर संक्रांति क्यों है शुभ

मध्य दिसंबर से 14 जनवरी तक सूर्य धनु राशि में रहता है, जिसे मलमास या अशुभ काल माना जाता है। इस दौरान विवाह, गृह निर्माण, और अन्य शुभ कार्य वर्जित होते हैं। मकर संक्रांति के दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है, जिससे "उत्तरायण" की शुरुआत होती है। यह समय शुभ और मांगलिक कार्यों के लिए उपयुक्त माना जाता है।

दक्षिणायन: सूर्य का दक्षिण दिशा में झुकाव। इसे देवताओं की रात्रि और नकारात्मकता का प्रतीक माना गया है।

उत्तरायण: सूर्य का उत्तर दिशा में झुकाव। इसे देवताओं का दिन और सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है।

मकर संक्रांति का धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व

1. उत्तरायण का महत्व:

उत्तरायण को आध्यात्मिक साधना, पूजा-अर्चना और शुभ कार्यों के लिए विशेष फलदायी माना गया है।

2. दान और स्नान:

इस दिन गंगा-स्नान और दान का विशेष महत्व है। मान्यता है कि मकर संक्रांति पर किए गए स्नान और दान से अनंत पुण्य की प्राप्ति होती है।

3. शुभ कार्यों की शुरुआत:

मकर संक्रांति के दिन से विवाह, गृह निर्माण, यज्ञ और अन्य शुभ कार्य शुरू किए जा सकते हैं।

4. मकर संक्रांति और मृत्यु:

शास्त्रों के अनुसार, उत्तरायण काल में मृत्यु होने से व्यक्ति को मोक्ष प्राप्त होता है।

ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व

1. सूर्य और शनिदेव का मिलन:

मकर संक्रांति के दिन सूर्यदेव अपने पुत्र शनिदेव के घर जाते हैं। इसे पिता-पुत्र के संबंधों का प्रतीक भी माना जाता है।

2. भगीरथ की तपस्या:

इस दिन भगीरथ ऋषि ने अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए गंगा को पृथ्वी पर लाने का तप पूर्ण किया था।

3. सांकरासुर का वध:

मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन संक्रांति देवी ने संकरासुर नामक असुर का वध किया था।

मकर संक्रांति का सामाजिक महत्व

यह पर्व भारत के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग नामों और परंपराओं के साथ मनाया जाता है:

पोंगल: तमिलनाडु

लोहड़ी: पंजाब

माघ बिहू: असम

उत्तरायणी: उत्तराखंड

विशेष परंपराएं

1. काले वस्त्र पहनना:

इस दिन सनातन धर्म में काले वस्त्र पहनने की अनुमति है, क्योंकि वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह अधिक होता है।

2. खिचड़ी का दान:

इस दिन खिचड़ी बनाना और उसका दान करना विशेष पुण्यकारी माना जाता है।

मकर संक्रांति एक ऐसा पर्व है, जो ऋतु परिवर्तन, धार्मिक आस्था, और सामाजिक समरसता का प्रतीक है। यह केवल एक पर्व नहीं, बल्कि सकारात्मकता, अध्यात्म और शुभता का संदेश देता है।

पं. मोहित पाठक

महर्षि भृगु वैदिक गुरुकुलम्

रामगढ़, गंगापुर, बलिया (उत्तर प्रदेश)

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