जीवित्पुत्रिका व्रत: मातृशक्ति की आस्था और संतान के प्रति नि:स्वार्थ प्रेम का प्रतीक

जीवित्पुत्रिका व्रत, जिसे जिउतिया या जीमूतवाहन व्रत भी कहा जाता है, माताओं की संतान के प्रति अटूट आस्था और प्रेम का प्रतीक है। यह व्रत गंधर्व राजकुमार जीमूतवाहन की स्मृति में किया जाता है, जिन्होंने नाग जाति की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया था। मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से संतान पर आने वाले संकट दूर होते हैं और उन्हें दीर्घायु, स्वास्थ्य व सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।

व्रत विधि एवं तिथि

हर साल आश्विन कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को यह व्रत किया जाता है। वर्ष 2025 में यह व्रत रविवार, 14 सितंबर को सर्वार्थ सिद्ध योग में किया जाएगा। महिलाएं इस दिन निर्जला-निराहार रहकर अपनी संतान की लंबी उम्र और मंगलकामना करती हैं। सरगही (ओठगन) का शुभ मुहूर्त प्रातः 5:53 बजे तक रहेगा, जबकि पारण 15 सितंबर को सुबह 6:27 बजे के बाद किया जाएगा।

व्रत करने वाली महिलाएं स्नान कर भगवान विष्णु, माता जीमूतवाहन और अपने इष्टदेव की पूजा करती हैं। दिनभर उपवास करने के बाद संध्या समय कथा श्रवण व पूजन के साथ दान-दक्षिणा देती हैं। परंपरा के अनुसार माताएं जिउतिया धागा धारण करती हैं, जिसमें सोने या चांदी से बनी जीमूतवाहन की प्रतिकृति लगी रहती है। पूजा के उपरांत यह धागा पुत्र के गले में बांधकर उसकी दीर्घायु और सुख-समृद्धि की कामना की जाती है।

जीमूतवाहन व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, भाद्रपद शुक्ल अष्टमी के दिन जीमूतवाहन ने शंखचूड़ नामक नाग को बचाने के लिए स्वयं को गरुड़ के सामने प्रस्तुत कर दिया। उनके त्याग और साहस से प्रसन्न होकर गरुड़ ने नागों को न खाने का वचन दिया। तभी से इस व्रत को नागों की रक्षा और संतान की लंबी उम्र से जोड़ा जाता है।

यह व्रत खासकर उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और नेपाल में श्रद्धा व विश्वास के साथ मनाया जाता है। यह केवल संतान की दीर्घायु का पर्व ही नहीं, बल्कि माताओं के त्याग, करुणा और धर्म का जीवंत उदाहरण भी है।

ज्योतिषाचार्य

डॉ. अखिलेश कुमार उपाध्याय

इंदरपुर, थम्हनपुरा, बलिया

📞 9918861411

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