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एशिया के पहले कार्बन-न्यूट्रल कॉन्फ्रेंस में शिक्षा से मजबूती और स्थिरता पर दिया गया जोर
एशिया के पहले कार्बन-न्यूट्रल कॉन्फ्रेंस में यूनेस्को का आह्वान, शिक्षा से ही मुमकिन है सस्टेनेबल भविष्य

एशिया का पहला कार्बन-न्यूट्रल सस्टेनेबिलिटी कॉन्फ्रेंस अमृता विश्व विद्यापीठ में यूनेस्को के सहयोग से हुआ आयोजित
यूनेस्को ने इस वैश्विक सस्टेनेबिलिटी कॉन्फ्रेंस में अमृता की साझेदारी की सराहना की। इसमें 20 देशों के 1,000 प्रतिभागी शामिल हुए
उद्घाटन समारोह में सरकारी शीर्ष नेताओं ने हिस्सा लिया। इनमें कर्नाटक के अतिरिक्त मुख्य सचिव और विकास आयुक्त उमा महादेवन दासगुप्ता आईएएस और नाबार्ड के चेयरमैन के. वी. शाजी शामिल थे। माता अमृतानंदमयी मठ के महासचिव स्वामी पूर्णामृतानंद पुरी ने समापन भाषण दिया। अमृता यूनिवर्सिटी के वरिष्ठ नेता भी मौजूद थे, जिनमें डॉ. पी. अजीथ कुमार (रजिस्ट्रार), डॉ. मनीषा वी. रमेश (प्रोवोस्ट), डॉ. बिपिन जी. नायर (बायोटेक्नोलॉजी स्कूल के डीन) और डॉ. एम. रविशंकर (स्कूल फॉर सस्टेनेबल फ्यूचर्स के प्रिंसिपल) शामिल रहे।
यह कॉन्फ्रेंस अमृता स्कूल फॉर सस्टेनेबल फ्यूचर्स, यूनेस्को चेयर ऑन एक्सपीरिएंशियल लर्निंग फॉर सस्टेनेबल इनोवेशन एंड डेवलपमेंट और इंटरनेशनल नेटवर्क फॉर सस्टेनेबल इनोवेशन एंड रेजिलिएंट फ्यूचर्स ने मिलकर आयोजित किया। इस चार दिन के कार्यक्रम में 20 से ज्यादा देशों से करीब 1,000 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया। इसमें 80 से ज्यादा एक्सपर्ट लेक्चर, हैकाथॉन, संगोष्ठी, वर्कशॉप्स और पेपर प्रेजेंटेशन हुए।
डॉ. करटिस ने सस्टेनेबिलिटी के लिए शिक्षा की अहमियत पर जोर दिया। उन्होंने कहा, "पार्टनरशिप फॉर ग्रीनिंग एजुकेशन के जरिए 1,300 से ज्यादा गैर-सरकारी संगठन, प्राइवेट कंपनियाँ और शिक्षण संस्थान हर सिस्टम में हरित पाठ्यक्रम, शिक्षण और समुदाय को शामिल कर रहे हैं। स्थिरता सिर्फ एक लक्ष्य नहीं है, बल्कि एक सिद्धांत है, जो आज की आवश्यकताओं को बिना भविष्य की पीढ़ियों को नुकसान पहुँचाए पूरी करता है। यूनेस्को का लंबे समय से चल रहा 'मैन एंड द बायोस्फियर' प्रोग्राम इसी सोच के जरिए प्रकृति की सुरक्षा करता है और इंसान को उन इकोसिस्टम्स के साथ संतुलन में रखता है, जिन पर हम निर्भर हैं।"
कॉन्फ्रेंस के दौरान तीन डिजिटल प्लेटफॉर्म लॉन्च किए गए, जिनमें एसआरईई (सस्टेनेबिलिटी एंड रेजिलिएंस बाय कम्युनिटी एंगेजमेंट एंड एम्पावरमेंट) प्लेटफॉर्म भी शामिल है। यह प्लेटफॉर्म जीओ-इनेबल्ड संकेतकों का इस्तेमाल करके समुदायों की मजबूती और सहनशीलता बढ़ाता है। यह वैश्विक प्राथमिकताओं के साथ मेल खाता है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार सिर्फ 2022 में ही जलवायु संबंधी आपदाओं के कारण दुनिया भर में 32 मिलियन से ज्यादा लोग विस्थापित हुए। इन आँकड़ों से समुदाय आधारित मजबूत योजनाओं की जरूरत और बढ़ जाती