बदलाव की ओर

हाल के वर्षों में अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में विविधता आई है। बदलती वैश्विक व्यवस्था के बीच भू-राजनीति आगे बढ़ती दिख रही है। उभरती प्रौद्योगिकियां भू-राजनीति के अगले चरण की दिशा निर्धारित करेंगी, आपूर्ति श्रृंखलाओं का ध्रुवीकरण एक नई चुनौती है।

प्रमुख सत्ता संघर्षों और गतिशील बहुपक्षीय व्यवस्था के वर्तमान युग में भू-राजनीतिक समीकरण बदले जा रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में शक्ति संतुलन बदलने लगा है। भारत, अमेरिका और सउदी अरब ज्यादा नजदीक हैं।

सउदी अरब अपने विशाल तेल भंडार और उससे हासिल आर्थिक ताकत के दम पर अरब देशों के बीच अगुआ बनने की ओर अग्रसर है, लेकिन ईरान उसकी राह में बाधा है। बीते शनिवार को हमास का इजराइल पर हमला सिर्फ फलस्तीनी आजादी का संघर्ष नहीं है, बल्कि वैश्विक राजनीति में आ रहे बदलावों और शक्ति संतुलन के नए समीकरणों की उपज है।

जिस तरह हमास ने इस्राइल जैसी सैनिक ताकत को चौंकाया है, उसके मिसाइल रोधी सिस्टम को चकमा दिया है, उससे साफ है कि उसे तकनीक ऐसे देशों ने मुहैया कराई है, जिनकी सैनिक और वैज्ञानिक ताकत स्थापित है। दुनिया का एक बड़ा हिस्सा यह मानने लगा है कि यह हमला न सिर्फ सुनियोजित है, बल्कि इसके पीछे मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में उपजीं परिस्थितियां जिम्मेदार हैं। 

अमेरिका ने साफ कहा है कि इस हमले के पीछे ईरान का हाथ है। इजराइल और फलस्तीनी आतंकी संगठन हमास में जंग के बीच गुरुवार को अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन इजराइल पहुंचे। ब्लिंकन ने इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से मुलाकात की।

ब्लिंकन ने कहा कि अब हम एकजुट होकर लड़ेंगे। हालांकि ब्लिंकन का इजराइल दौरा वहां फंसे और हमास द्वारा बंधक बनाए गए अमेरिकी नागरिकों को बचाने के लिए देखा जा रहा है। इस दौरान भारत की ओर से एक बड़ा बयान आया है।

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि भारत ने हमेशा ही एक संप्रभु, स्वतंत्र और व्यवहार्य फलस्तीन देश की स्थापना संबंधी मांग का समर्थन किया है। साथ ही यह भी कहा गया है कि भारत हमेशा से सीधी बातचीत को फिर से शुरू करने की वकालत करता रहा है।

इस बीच विदेश मंत्रालय ने पुनः हमास द्वारा इजरायल पर किए गए हमले को ‘आतंकवादी हमला’ करार दिया। हमास के हमले की प्रतिक्रिया नई विश्व व्यवस्था की ओर भी कदम बढ़ाएगी। कहा जा सकता है कि भारत उभरती भू-राजनीतिक व्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

वैश्विक व्यवस्था में आए महत्वपूर्ण मोड़ पर भारत से सक्रिय होने की उम्मीद की जाएगी। ऐसे में भारतीय नीति निर्माताओं को दीर्घकालिक प्रभावों के आलोक में अपने कई नीति विकल्पों का रणनीतिक मूल्यांकन करना होगा।

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