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बदले समीकरण
बिहार में कई दिनों से जारी राजनीतिक उथल-पुथल थम गई है। राज्य में सत्ता का समीकरण एक बार फिर बदल गया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आरजेडी से अलग होने का फैसला कर भारतीय जनता पार्टी के साथ सरकार बना ली है। रविवार को नीतीश कुमार ने जबरदस्त सियासी घमासान के बाद नौवीं बार राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।
विपक्षी दलों के बीच गठबंधन करके ज्यादा से ज्यादा सीटों पर एनडीए के खिलाफ साझा प्रत्याशी खड़ा करने का पूरा प्रयास नीतीश कुमार की ही पहल पर शुरू हुआ था। ऐसे में उनके जाने के बाद यह प्रकिया किस तरह से और कितनी आगे बढ़ेगी, इस पर सवाल खड़ा हो गया है। जाहिर है, आगे घटनाएं चाहें जैसा भी मोड़ लें, इतना तय है कि इंडिया को अपनी विश्वसनीयता की नई परीक्षाओं से गुजरना होगा। राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाएं पूरी करने की चाह में पिछले साल की शुरुआत में नीतीश ने विभिन्न भाजपा विरोधी पार्टियों को एक मंच पर लाने के प्रयास में , देश का दौरा करना शुरू किया।
ममता बनर्जी और उद्धव ठाकरे जैसे नेताओं से मुलाकात की। उनके प्रयासों का फल इंडिया गठबंधन के रूप में मिला। नीतीश को विपक्षी गठबंधन के वास्तुकार के रूप में देखा गया । जिस बात से इंडिया के नेता हतप्रभ हैं, वह है बिहार के मुख्यमंत्री का उन लोगों के साथ शामिल होने का अचानक लिया गया निर्णय, जिनके खिलाफ वह युद्ध छेड़ने की तैयारी कर रहे थे।
नीतीश गठबंधन के उन पारित प्रस्तावों के हस्ताक्षरकर्ता थे, जिसमें कहा गया था कि केंद्र सरकार लोकतंत्र के लिए खतरा है और विपक्षी गठबंधन देश बचाने के लिए लड़ रहा है। हालांकि नीतीश कुमार ने पहले भी अपने अवसरवादी निर्णयों से राजद और भाजपा को झटके दिए हैं, लेकिन भाजपा को गले लगाने की उनकी ताजा रणनीति आगामी आम चुनाव से पहले विपक्ष के राजनीतिक गणित को गड़बड़ करने की क्षमता रखती है।