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चिंताजनक आंकड़े

आम लोगों पर कर्ज का बोझ तेजी से बढ़ा है। इन परिवारों पर कर्ज का बोझ दोगुना से भी अधिक होकर 15.6 लाख करोड़ रुपये पहुंच गया। आजादी के बाद यह दूसरा मौका है जब लोगों की वित्तीय देनदारियां इतनी तेजी से बढ़ी हैं। साथ ही एसबीआई की रिसर्च रिपोर्ट से मिले आंकड़ों के मुताबिक पिछले वित्त वर्ष में परिवारों की शुद्ध वित्तीय बचत करीब 55 प्रतिशत गिरकर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 5.1 प्रतिशत पर आ गई, जो पिछले पांच दशक में सबसे कम है।
वहीं परिवारों की देनदारी के स्तर पर हुई 8.2 लाख करोड़ रुपये की वृद्धि में 7.1 लाख करोड़ रुपये वाणिज्यिक बैंकों से घरेलू उधारी का नतीजा है। हालांकि पिछले दो वर्षों में घरेलू वित्तीय बचत का स्वरूप घरेलू भौतिक बचत में बदल गया है। रियल एस्टेट क्षेत्र में सुधार और संपत्ति की कीमतें बढ़ने से भौतिक संपत्तियों की ओर रुझान बढ़ा है। गुरुवार को वित्त मंत्रालय ने घरेलू बचत में गिरावट को लेकर हो रही आलोचनाओं को नकारते हुए कहा कि लोग अब दूसरे वित्तीय उत्पादों में निवेश कर रहे हैं और संकट जैसी कोई बात नहीं है। आंकड़ों से भी पता चलता है कि उपभोक्ताओं का रुझान अब विभिन्न वित्तीय उत्पादों की ओर है और यही कारण है कि घरेलू बचत कम हुई है। एक तरफ कहा जा रहा है कि देश में रोजगार बढ़ा है।
लोगों की आमदनी भी बढ़ी है इसके बावजूद लोगों पर कर्ज का बढ़ना व बचत का घटना साबित करता है कि लोग जो भी कमा रहे हैं, उसे खर्च कर रहे हैं। जानकारों के मुताबिक बचत घटने और कर्ज बढ़ने के पीछे बढ़ती महंगाई का बड़ा हाथ है। यानि परिवार अपनी उपभोक्ता जरूरतों को पूरा करने के लिए उधारी को बढ़ा रहे हैं। जबकि सामान्य सरकारी वित्त और गैर-वित्तीय कंपनियों के लिए कोष जुटाने का सबसे महत्वपूर्ण जरिया घरेलू बचत ही होती है।