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Prayagraj News: प्रोबेशन अवधि में सेवा समाप्ति पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणी

Prayagraj News: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक कॉलेज की प्रबंध समिति द्वारा प्रोबेशन अवधि के दौरान सेवा समाप्ति के आदेश पर महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि किसी प्रोबेशनर को केवल संविदात्मक अधिकारों या रोजगार नियमों के तहत न तो बर्खास्त किया जा सकता है और न ही हटाया जा सकता है।
यह टिप्पणी न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की एकलपीठ ने प्रबंधन समिति के आदेश को बरकरार रखते हुए की। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि प्रोबेशन अवधि के दौरान किसी कर्मचारी का कार्य संतोषजनक नहीं पाया जाता, तो प्रबंधन समिति उसकी प्रोबेशन अवधि न बढ़ाने का आदेश पारित कर सकती है।
याची पर आरोप था कि वह व्यायाम के सहायक अध्यापक के रूप में अपने कर्तव्यों का सही ढंग से निर्वहन नहीं कर रहा था और महाविद्यालय के सामान्य कार्यों में बाधा उत्पन्न कर रहा था। इसके अलावा, उसने छात्रों को महाविद्यालय की गतिविधियों में शामिल करने के बजाय कबड्डी प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। जांच के दौरान एकत्रित सामग्री और गवाहों के बयानों के आधार पर इन आरोपों की पुष्टि हुई।
हालांकि, याची के अधिवक्ता ने इन आरोपों को खारिज किया, लेकिन वे अपने पक्ष में कोई ठोस साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर सके। इसके चलते हाईकोर्ट ने 26 नवंबर 2007 के आक्षेपित आदेश को बरकरार रखते हुए प्रबंधन समिति के निर्णय को उचित ठहराया।
नियुक्ति और सेवा समाप्ति की प्रक्रिया
याची को एक विज्ञापन के तहत भर्ती प्रक्रिया में सहायक अध्यापक (व्यायाम) के पद पर नियुक्त किया गया था और 4 जनवरी 2006 को अल्पसंख्यक संस्थान में एक वर्ष की प्रोबेशन अवधि पर सेवा में शामिल किया गया। बाद में प्रबंधन समिति ने उसका प्रोबेशन एक और वर्ष के लिए, यानी 3 जनवरी 2008 तक बढ़ा दिया।
जब याची को स्थायी नहीं किया गया, तो उसने डीआईओएस, हाथरस से संपर्क किया। सितंबर 2007 में उसे एक आरोप पत्र दिया गया, जिसमें उस पर अपने कर्तव्यों के प्रति लापरवाही का आरोप लगाया गया। याची के अधिवक्ता ने दलील दी कि प्रोबेशन अवधि पूरी होने के बावजूद उसे स्थायी घोषित नहीं किया गया और बिना किसी कानूनी आधार के एक साल के लिए बढ़ा दिया गया।
हालांकि, हाईकोर्ट ने प्रबंधन समिति के निर्णय में हस्तक्षेप से इनकार कर दिया और सेवा समाप्ति के आदेश को सही ठहराया।