गंगा एक्सप्रेस-वे पर भीषण हादसा: कार-पिकअप की टक्कर में एक ही परिवार के 6 सदस्यों की मौत, अमरोहा में शोक की लहर

मुरादाबाद। उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद मंडल में सड़क सुरक्षा के इंतजाम एक बार फिर नाकाम साबित हुए हैं। यातायात माह के दौरान गंगा एक्सप्रेस वे पर बृहस्पतिवार रात को अल्टो कार एवं पिकअप वाहन की आमने-सामने की टक्कर से एक परिवार के तीन मासूमों सहित छह लोगों की मौत से गमगीन माहौल। घायलावस्था में भर्ती पिता-पुत्र निजी अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष कर रहे हैं। हादसे के दौरान परिवार के आठ लोग दावत के बाद कार से वापस घर लौट रहे थे। 

इस हादसे में अमरोहा जिले के आदमपुर थाना क्षेत्र निवासी रोहित की पत्नी रेनू (35) बेटा भास्कर (07) बेटी रिया (10) बहन देववती (40) भाभी गीता (28) और साले के दस वर्षीय बेटे कपिल की मौत हो हो चुकी है।हादसे के वक्त कार चला रहे रोहित (38) और उसका 13 वर्षीय बड़ा बेटा जय गंभीर रूप से घायल हो गए। हादसा हयात नगर थाना क्षेत्र में एक्सप्रेस वे पर हुआ है। 

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टक्कर इतनी भयावह थी कि हादसे की चपेट में आने से पिकअप वाहन और आल्टो कार के परखच्चे उड़ गए। बृहस्पतिवार की रात मंडल के संभल जिले के हयात नगर थाना क्षेत्र से गुजरने के दौरान गंगा एक्सप्रेस वे पर कार और पिकअप की आमने-सामने की टक्कर लगने से हुआ हादसा इतना भयावह था कि तेज़ धमाके के साथ कार के परखच्चे उड़ गए और दोंनो वाहन चिपक गये । 

इसके बाद आसपास मौजूद लोग दौड़कर हुए घटनास्थल पर पहुंचे, पुलिस को सूचना दी गई। घटनास्थल पर पुलिस अधीक्षक संभल (उत्तरी) कुलदीप सिंह, प्रभारी निरीक्षक उमेश सोलंकी, कैलादेवी प्रभारी निरीक्षक सौरभ त्यागी दल-बल सहित पहुंचे। पुलिस ने स्थानीय लोगों की मदद से मलबे में फंसे शवों को बामुश्किल बाहर निकाला। 

बताया जा रहा है कि बहजोई(संभल )क्षेत्र के गांव बिसारु निवासी रोहित कुमार पिछले कुछ वर्षों से मंडल के अमरोहा जिले के आदमपुर में अपनी पत्नी, छोटे भाई सुनील, भाभी पिंकी आदि परिजनों के साथ रह रहे थे। 27 नवंबर को पैतृक गांव बिसारु में परिवार में नामकरण संस्कार में शामिल होने के लिए परिवार सहित अल्टो कार से पहुंचे थे। 

कार्यक्रम के बाद सभी लोग कार से लौट रहे थे, लेकिन किसी को भी यह अंदाजा नहीं था कि गंगा एक्सप्रेस वे पर इतना बड़ा हादसा हो जाएगा। हादसे के वक्त कार चला रहे रोहित ने जैसे ही कार खिरानी के रास्ते गंगा एक्सप्रेस वे पर चढ़ाई तो कुछ ही दूरी पर सामने से आ रही सब्जी से लदी एक तेज़ रफ़्तार बोलेरो पिकअप गाड़ी से कार की टक्कर हो गई। 

जिसमें रोहित और जय घायल हो गए जबकि उसकी दस वर्षीया बेटी रिया,सात वर्षीय पुत्र भास्कर, कपिल (10) बहन देववती, रीनू,व रिया तीन बच्चों व तीन महिलाओं सहित छह लोगों की मौत हो गई। उल्लेखनीय है कि मेरठ से प्रयागराज जाने वाले 549 किलोमीटर लंबे गंगा एक्सप्रेस वे को अंतिम रूप दिया जा रहा है।

गंगा एक्सप्रेस वे का निर्माण करने वाली संस्था आईओबी से जुड़े राकेश मोगा ने अगले महीने दिसंबर में काम पूरा होने की बात कही,साथ निर्माणाधीन एक्सप्रेस वे को जाने वाले सभी रास्ते बंद होने का दावा किया। बताया कि एक्सप्रेस वे पर वाहनों की आवाजाही पर रोक लगी हुई है। 

एक्सप्रेस वे के समीप गांव निवासी किसान नेता विजय सिंह ने आरोप लगाया कि सुपर एक्सप्रेस वे पर जहां करोड़ों की चमक दिखाई जाती है, वहां पर सुरक्षा के नाम पर एक भी रुपया खर्च नहीं किया जा रहा है ,दिल्ली-लखनऊ नेशनल हाईवे-9 हो या हरिद्वार को जाने वाला बिल्सी बदायूं स्टेट हाईवे-51 हो जिस पर जगह-जगह अवैध रूप से कट बना रखे हैं।

आए दिन सड़क हादसे आम बात हैं लेकिन ट्रामा सेंटर तक नहीं होने से सड़क हादसे में घायलों को समुचित इलाज व्यवस्था नहीं मिलने की वजह से मौत होने की घटनाओं में वृद्धि हो रही हैं। भाजपा किसान मोर्चा के पूर्व उपाध्यक्ष कैलाश गुर्जर ने अपने बयान में कहा कि सड़क सुरक्षा माह में पोस्टर चिपकाए जा रहे हैं, हेलमेट पहनकर फोटो खिंचवाएं जा रहे हैं, जागरूक अभियान चलाने के बावजूद सड़कों पर मौत का तांडव जारी है। 

प्रधान संघ के नरेन्द्र कटारिया ने कहा कि बीती रात हुए भीषण हादसे में अमरोहा जिले में एक साथ छह लाशें उठीं,उस पर अफसोस जताया जाएगा, दो दिन शोर मचेगा, फिर सब भूल जाएंगे। उन्होंने कहा कि यह लापरवाही नहीं सरासर हत्या है। मेरठ के बिजौली, हापुड़ के सिंभावली, अमरोहा के मंगरौला, संभल के खिरनी तथा बदायूं जनपदों से गुजरने वाले गंगा एक्सप्रेस वे पर लापरवाही का आलम यह है कि कागज़ों में भले ही रास्ते ब्लाक हों लेकिन जमीनी हकीकत इसके एक दम उलट है। 

स्थानीय लोग इसे शार्ट-कट के रूप में बेरोकटोक धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रहे हैं जिससे दुर्घटनाओं का ख़तरा बढ़ता ही जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि एक्सप्रेस वे बनाना देश की जरूरत है लेकिन अगर सिर्फ सड़क बनाकर यूंही छोड़ दें और बाकी सिस्टम (वाहन, चालक,नियम और जागरूकता) को 1990 के दशक में छोड़ दें, तो ये सड़कें 'डेथ ट्रैप' बन जाएंगी। 

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