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शहरी विकास की चुनौतियां
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शहरीकरण वैश्विक विकास की सबसे बड़ी प्रेरक शक्ति बनकर पूरी दुनिया में उभरा है। वैश्वीकरण के उपरांत शहरी विकास की अवधारणा समावेशी विकास की एक अनिवार्य शर्त बन गई है। शहरों के विकास को ही भारत के विकास की धुरी माना जा रहा है।
शहरी जीवन में साक्षरता और शिक्षा का उच्च स्तर, बेहतर स्वास्थ्य, लंबी जीवन प्रत्याशा, सामाजिक सेवाओं तक अधिक पहुंच एवं सांस्कृतिक एवं राजनीतिक भागीदारी के अधिक अवसर प्राप्त होते हैं। भारत में शहरीकरण के नकारात्मक प्रभाव, मनोसामाजिक स्वास्थ्य समस्याएं, कचरा संग्रहण और निपटान, ध्वनि प्रदूषण और सड़क दुर्घटनाएं जैसी कई समस्याएं पैदा हुई हैं। साथ ही भारत के शहरी क्षेत्र गंभीर वायु प्रदूषण स्तर से जूझ रहे हैं, जिसका मुख्य कारण वाहनों से निकलने वाला उत्सर्जन, औद्योगिक गतिविधियां और निर्माण परियोजनाएं हैं।
विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट के अनुसार विश्व के शीर्ष 10 प्रदूषित शहरों में से नौ भारत में हैं। तीव्र शहरीकरण और निजी वाहनों के बढ़ते चलन के कारण यातायात भीड़ बढ़ गई है, यात्रा समय की वृद्धि हुई है और उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। तीव्र शहरीकरण और हरित स्थानों की कमी के कारण ‘अर्बन हीट आइलैंड इफेक्ट’ उत्पन्न हुआ है, जिससे तापमान और ऊर्जा की मांग में वृद्धि हुई है। शहरी विकास के साथ होने वाला एक बड़ा बदलाव ऊर्जा और पानी की बढ़ती मांग है।
पानी और बिजली की खपत में यह अनुमानित वृद्धि सीधे भविष्य की शहरी आबादी की वृद्धि से संबंधित है - शहरी लोग काफी अधिक पानी और ऊर्जा का उपयोग करते हैं। कहा जा सकता है कि शहरी विकास के कारण होने वाले तीव्र परिवर्तन भी अस्थिर करने वाले हो सकते हैं, यदि उनका प्रबंधन ठीक से न किया जाए।
ऐसे में भारत के शहरी परिदृश्य से संबंद्ध चुनौतियों की बात की जाए तो भारत में शहरी नियोजन के लिए एक ऐसे सूक्ष्म दृष्टिकोण को अपनाना समय की मांग है, जो आर्थिक विकास, सुरक्षा और नागरिकों के हित के बीच संतुलन स्थापित करता हो। यानि भारत में शहरी विकास की चुनौतियों से निपटने के लिए व्यापक रणनीतियों की आवश्यकता है।