Prayagraj News: 25 देशों और पांच महाद्वीपों से आए श्रद्धालुओं ने संगम में लगाई आस्था की डुबकी

महाकुंभ नगर: महाकुंभ महापर्व में 25 देशों और पांच महाद्वीपों से आए श्रद्धालुओं ने मंगलवार को परमार्थ निकेतन शिविर के स्वामी चिदानंद सरस्वती के सान्निध्य में संगम में आस्था की डुबकी लगाई। यह दिव्य क्षण वैश्विक एकता, सद्भाव और समरसता का प्रतीक बना, जिसमें भारत और विदेशों से आए भक्तों ने पुण्य अर्जित करने के लिए संगम स्नान किया।

हादसे के पीड़ितों को समर्पित की डुबकी

भारत में नॉर्वे की राजदूत मे-एलिन स्टेनर और उनके पति, मैक्सिको के प्रसिद्ध पर्यावरणविद् अबुएलो एंटोनियो ऑक्सटे, समेत 25 देशों के श्रद्धालुओं ने दिल्ली रेलवे स्टेशन पर हुए हादसे के पीड़ितों की आत्मा की शांति के लिए संगम में स्नान किया और भावांजलि अर्पित की।

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स्वामी चिदानंद सरस्वती ने इस अवसर पर कहा, "जो दिवंगत आत्माएं संगम स्नान के लिए आई थीं लेकिन हादसे का शिकार हो गईं, हम यह डुबकी उनकी शांति और सद्गति के लिए समर्पित करते हैं। प्रभु उन्हें अपने श्रीचरणों में स्थान दें और उनके परिजनों को इस दुःख को सहने की शक्ति प्रदान करें।"

विश्व एकता का संदेश देती मानव श्रृंखला

अरैल परमार्थ निकेतन शिविर से लेकर अरैल घाट और संगम तट तक श्रद्धालुओं ने मानव श्रृंखला बनाकर वैश्विक एकता और सामूहिक सहयोग का संदेश दिया। यह श्रृंखला इस बात का प्रतीक थी कि जब हम एकजुट होते हैं, तो कोई भी मुश्किल हमें तोड़ नहीं सकती।

श्रद्धालुओं ने एक साथ मिलकर यह संदेश दिया कि "हम सभी का जीवन एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है, और हम सब एक ही पृथ्वी के नागरिक हैं।" यह आयोजन सांस्कृतिक विविधता और विश्व शांति का प्रतीक बना, जिसमें विभिन्न देशों के श्रद्धालु एक मंच पर आकर भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा बने।

सांस्कृतिक और आध्यात्मिक एकता का प्रतीक

इस अवसर पर डॉ. ईशान शिवानंद ने कहा, "स्वामी जी के सान्निध्य में आयोजित यह दिव्य स्नान और श्रद्धांजलि प्रार्थना मानवता को समर्पित है। हम सभी एक परिवार हैं, और जब हम मिलकर कार्य करते हैं, तो दुनिया को एक बेहतर स्थान बना सकते हैं।"

साध्वी भगवती सरस्वती ने श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा, "चाहे हमारी संस्कृति, विश्वास या धर्म अलग हों, लेकिन हमें एक-दूसरे के प्रति प्रेम और सम्मान बनाए रखना चाहिए। मानवता का वास्तविक उद्देश्य सहिष्णुता और प्रेम के साथ मिलकर जीना है।"

संगम में हुआ यह पवित्र आयोजन न केवल श्रद्धा और आस्था का प्रतीक बना, बल्कि यह एक वैश्विक परिवार की भावना का भी संदेश दे गया।

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