हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: आरोपी किशोर को 21 वर्ष से पहले जेल में रखना अवैध

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने साफ किया है कि किसी भी अपराध के आरोपी बच्चे को 21 वर्ष की आयु पूरी होने से पहले जेल में नहीं रखा जा सकता। अदालत ने कहा कि यदि गिरफ्तारी के समय आरोपी ने स्वयं को किशोर नहीं बताया, लेकिन बाद में ट्रायल कोर्ट के समक्ष यह दावा किया जाता है और उसकी आयु कम पाई जाती है, तो उसे जेल में रखना अवैध होगा। ऐसे मामलों में किशोर को जेल नहीं, बल्कि बाल संरक्षण गृह में रखा जाना चाहिए।

न्यायमूर्ति सलिल कुमार राय और न्यायमूर्ति संदीप जैन की खंडपीठ ने यह आदेश पवन कुमार नामक किशोर की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। अधिवक्ता मोहम्मद सलमान और नाजिया नफीस ने याचिकाकर्ता की ओर से बहस की।

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कोर्ट ने कहा कि किशोर के मामले में आपराधिक न्यायालय में मुकदमा नहीं चल सकता, इसलिए जमानत की अर्जी दाखिल करने की आवश्यकता भी नहीं है। अदालत ने नैनी जेल अधीक्षक को तुरंत याची को रिहा करने का निर्देश दिया और कहा कि पुलिस कमिश्नर प्रयागराज उसे ट्रायल कोर्ट में पेश करें। वहां धारा 9(2) के तहत उसकी अपराध-समय की आयु का निर्धारण किया जाए। यदि आरोपी की आयु 16 वर्ष से कम पाई जाती है तो मामला किशोर न्याय बोर्ड को भेजा जाएगा, अन्यथा ट्रायल जारी रहेगा।

मामला प्रयागराज के थरवई थाना क्षेत्र का है, जहां 1 अप्रैल 2017 को याची, उसके भाई और मां पर शिकायतकर्ता के भाई की हत्या करने का आरोप लगा था। गिरफ्तारी के बाद याची को मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया गया और फिर सत्र अदालत में मामला भेजा गया। पुलिस ने चार्जशीट दाखिल कर दी और आरोप तय हो गए। इसके बाद पहली बार याची की ओर से किशोर होने का दावा उठाया गया।

अदालत की जांच में सामने आया कि घटना के समय याची की आयु 14 वर्ष 3 माह 19 दिन थी। इसके बाद किशोर न्याय बोर्ड ने 15 मई 2025 को उसे किशोर घोषित कर दिया और जेल अधीक्षक को आदेश भेजा। बावजूद इसके रिहाई न होने पर यह बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल की गई। हाईकोर्ट ने सभी कानूनी पहलुओं पर विचार करने के बाद याची की तत्काल रिहाई का आदेश दे दिया।

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