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लखीमपुर खीरी : कालाआम पीएचसी अधीक्षक ने संदिग्ध हालात में खाया जहर, उपचार के दौरान मौत

लखीमपुर खीरी। थाना फरधान क्षेत्र के कालाआम प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) के अधीक्षक डॉ. विनोद कुमार ने शुक्रवार देर शाम संदिग्ध परिस्थितियों में जहरीला पदार्थ खा लिया। हालत बिगड़ने पर उन्हें जिला अस्पताल से लखनऊ रेफर किया गया, जहां उपचार के दौरान शनिवार को उनकी मौत हो गई। घटना की खबर से परिवार और स्वास्थ्य विभाग में शोक की लहर दौड़ गई।
स्टाफ ने तुरंत उन्हें जिला अस्पताल पहुंचाया, जहां प्राथमिक उपचार के बाद लखनऊ रेफर कर दिया गया। लेकिन डॉक्टरों की कोशिशों के बावजूद उन्होंने दम तोड़ दिया। फरधान सीएचसी अधीक्षक डॉ. अमित वाजपेई ने बताया कि आत्महत्या की वजह स्पष्ट नहीं हो सकी है। पोस्टमार्टम के बाद परिजन शव लेकर गाजीपुर रवाना हो गए।
सूत्रों के अनुसार, डॉ. विनोद कुछ समय से मानसिक तनाव में थे। उन पर एक महिला द्वारा ब्लैकमेलिंग किए जाने का मामला सामने आया था, जिसे लेकर उनकी पत्नी ने मुकदमा भी दर्ज कराया था।
पत्नी ने नौकरानी और उसके भाई पर लगाया ब्लैकमेलिंग का आरोप
डॉ. विनोद की पत्नी सीमा गौतम, निवासी मानसरोवर (लखनऊ) ने अपनी नौकरानी माधुरी देवी और उसके भाई पवन कुमार पर आरोप लगाया था कि उन्होंने डॉक्टर को ब्लैकमेल कर लाखों रुपये और संपत्ति हड़प ली।
7 अगस्त 2025 को कोर्ट के आदेश पर सदर कोतवाली पुलिस ने माधुरी देवी व उसके भाई पवन, निवासी धूसेरपुरवा (सीतापुर), के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की थी। तहरीर में सीमा गौतम ने बताया था कि उन्होंने 19 जून 2023 को बच्चों की देखभाल के लिए माधुरी को घरेलू सहायिका के रूप में रखा था। कुछ समय बाद माधुरी ने अपने परिजनों की मदद से डॉ. विनोद को बहला-फुसलाकर झूठी शादी रचा ली और तस्वीरें लेकर ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया।
आरोप है कि धमकियों के डर से डॉ. विनोद ने लाखों रुपये दिए और लखीमपुर में एक प्लॉट भी उनके नाम कर दिया। जब उन्होंने इसका विरोध किया, तो आरोपी परिवार ने उन्हें जान से मारने और नौकरी से हटवाने की धमकी दी। इसके बाद से डॉक्टर गहरे मानसिक तनाव में रहने लगे थे।
एफआईआर के बाद भी नहीं हुई कार्रवाई, बढ़ा मानसिक दबाव
पुलिस ने इस मामले में भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 351(3), 127(2), 316(2) और 308(6) के तहत मुकदमा दर्ज कर जांच एसआई रमेश कुमार कन्नौजिया को सौंपी थी।
स्थानीय सूत्रों का कहना है कि मुकदमा दर्ज होने के बावजूद न तो किसी आरोपी की गिरफ्तारी हुई और न ही ठोस कार्रवाई की गई। आरोप है कि एफआईआर की जानकारी मिलते ही आरोपी महिला और उसके परिवार ने डॉक्टर पर दबाव और प्रताड़ना और बढ़ा दी थी।
लोगों का कहना है कि यदि पुलिस ने समय रहते प्रभावी कदम उठाए होते, तो शायद डॉ. विनोद कुमार आत्मघाती कदम न उठाते और उनकी जान बचाई जा सकती थी।