रामलला प्राण प्रतिष्ठा : बलिया के शिक्षक ने गुत्थी शब्दों की माला

निर्मला

रामप्रिया आज इठला रही
वेग से अपने कुछ बता रही
दिवस पावन है सुन मेरे वत्स
हूँ देविका डुबकी श्रद्धा घाट।
        सरयू नाम लहरें हुई झिलमिल
        सरमूल उद्गमस्थल कि है फेरा
        जमीं धुनी, धुआँ हुआ कोहरा
       ऋषि, महर्षि से तप रहा बसेरा।
हरि की पौड़ी क्लेश धुले धारा
उमड़ा रेला प्रिय है अभिवादन
भृगु  क्षेत्र भृगु-महर्षि की धरणी
गंगा सरयू बलियाग बना वर्णी।
        आह्वालादित है शिला तारणि
        रज कण साकेत जल की धारा
        थीरक फिरक तिनका है तैरा
        मनमोहक सब सुगंधित है रैना।

                     आर.कान्त, शिक्षक, बलिया

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Edited By: Parakh Khabar

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