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कालजयी रचनाकारों में पांक्तेय अप्रतिम साहित्यकार थे डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी

Ballia News : भारतीय साहित्य और संस्कृति के प्रतीक डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी, हिन्दी, संस्कृत, बांग्ला और अन्यान्य भारतीय भाषाओं के कालजयी रचनाकारों में पांक्तेय अप्रतिम साहित्यकार थे। उनका जन्म बलिया जनपद के ओझवलिया गांव में 19 अगस्त 1907 को हुआ था। पाण्डित्य की प्रकाण्डता और सर्जक की हार्दिकता के अद्भुत समन्वय से विनिर्मित द्विवेदी जी का विपुल साहित्य उनके विरल व्यक्तित्व का प्रतिबिम्ब है। द्विवेदी जी का मानना था कि शाश्वत मानवीय मूल्यों को दरकिनार कर सत-साहित्य की रचना असंभव है। रवीन्द्रनाथ टैगोर के सान्निध्य से द्विवेदी जी की परंपरा का एक नया बोध मिला, जिसके फलस्वरूप आधुनिक भाव बोध भी प्राप्त हुआ। वस्तुत: यह ऐसा सुभग समन्वय है, जिसमें परंपरा और प्रगति, प्राचीनता और नवीनता तथा लोक और शास्य का संतुलित ढंग समानांतर गति से चलते हैं।
मुख्य अतिथि सतीश चन्द्र कालेज बलिया के पूर्व अध्यक्ष परिपूर्णानन्द पाण्डेय 'बबलू' ने कहा कि द्विवेदी जी का अभिमत था कि जो साहित्य मनुष्य की दुर्गति, हीनता और परमुखापेक्षिता से बचा न सके, जो आत्मा को तेजोदीप्त न बना सकें, उसे साहित्य कहने में मुझे संकोच होता है। मानवतावाद से अनुप्राणित द्विवेदी जी का संपूर्ण साहित्य चिन्तन और मनन का आलोक है।
इस अवसर पर पूर्व जिला पंचायत सदस्य अवधेश राय,दोपही के पूर्व प्रधान मोहन दुबे, वरिष्ठ साहित्यकार श्रीशचंद्र पाठक, नरेंद्र तिवारी पत्रकार, सत्यनारायण गुप्ता,बीडीसी विवेक राय 'पिंटु', अक्षयवर मिश्रा, पप्पू दुबे, धीरज मिश्र, विनोद गुप्ता, बबलू पाठक, रजत गुप्ता, बीडीसी अर्जुन दुबे, राजीव दुबे 'बबुआ', अध्यापक सोनू दुबे, रितेश सोनी, पप्पू वर्मा, संतोष गुप्ता, सागर गुप्ता, अब्दुल सिद्दिकी आदि सैकड़ों लोग मौजूद रहे। कार्यक्रम आयोजक व संचालन कर रहे सुशील कुमार दुबे ने उपस्थित सभी लोगों का आभार व्यक्त किया।