शहीद लेफ्टिनेंट शशांक तिवारी को अश्रुपूरित विदाई: अंतिम यात्रा में दौड़ पड़ी मां, रामनगरी हुई गमगीन

अयोध्या, मझवा गद्दोपुर: गांव की गलियां खामोश थीं, हर चेहरा ग़मगीन और हर दिल भारी। शहीद लेफ्टिनेंट शशांक तिवारी की पार्थिव देह जैसे ही तिरंगे में लिपटी गांव पहुंची, हर ओर गूंजने लगा—‘शशांक अमर रहें!’ तस्वीरों में मुस्कुराता वह वीर, अब सभी की आंखों का आंसू बन चुका था। सिक्किम में तैनाती के दौरान जब साथियों की जान खतरे में थी, शशांक ने अपने प्राणों की परवाह किए बिना उन्हें बचाया और वीरगति को प्राप्त हुए।

सुबह 10 बजे शशांक का पार्थिव शरीर अयोध्या मिलिट्री हॉस्पिटल से उनके गांव लाया गया। भाई को तिरंगे में लिपटा देखकर बहन फूट-फूटकर रो पड़ी—“हमार भइया कहां चला गया?” कांपते हाथों से उन्होंने अंतिम प्रणाम किया। यह दृश्य देख वहां मौजूद हजारों लोगों की आंखें नम हो गईं।

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शहीद की अंतिम यात्रा सुबह 11:30 बजे जमथरा घाट के लिए निकली तो गांव का माहौल पूरी तरह शोक में डूब गया। इस दौरान शशांक की मां चीखती हुई घर से बाहर निकलीं और बेटे की शवयात्रा के पीछे दौड़ पड़ीं। वह बिलखती रहीं—“मेरे बेटे को कहां लेकर जा रहे हो?” सेना के जवानों और गांव की महिलाओं ने किसी तरह उन्हें संभाला।

राजकीय सम्मान के साथ शशांक का अंतिम संस्कार किया गया। पिता जंग बहादुर तिवारी ने बेटे को मुखाग्नि दी। जैसे ही सेना के जवानों ने उन्हें तिरंगा सौंपा, पिता फफक कर रो पड़े। शहीद को सेना ने बंदूकों की सलामी दी, और हर किसी की आंखों से आंसू बह निकले। केंद्रीय मंत्री सूर्य प्रताप शाही समेत हजारों लोगों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी।

गांव के लोगों ने कहा—“शशांक सिर्फ हमारे नहीं, पूरे देश के बेटे थे। उन्होंने दिखा दिया कि सच्ची देशभक्ति क्या होती है। अब वह कहानी बन गए हैं, जो पीढ़ियों को प्रेरणा देगी।”

एनडीए से सेना तक का सफर

शशांक तिवारी 2019 में NDA में चयनित हुए थे। पिछले साल उन्हें कमीशन मिला और पहली पोस्टिंग सिक्किम में हुई। वे घर के इकलौते बेटे थे और अविवाहित थे। पिता जंग बहादुर तिवारी मर्चेंट नेवी में कार्यरत हैं और वर्तमान में अमेरिका में तैनात हैं। मां नीता तिवारी की तबीयत अक्सर खराब रहती है।

शशांक तिवारी अब इस धरती पर नहीं हैं, लेकिन उनका बलिदान हमेशा देश के कण-कण में गूंजता रहेगा।

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