सिद्धू के हल्दी व नीम के पत्ते से कैंसर का इलाज दावे पर क्यों हैरान हुए डॉक्टर्स

  • टाटा मेमोरियल अस्पताल ने 262 कैंसर चिकत्सकों वाला बयान किया जारी

नई दिल्ली । राजनेता, सेलेब्रिटी और पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू ने हाल में अपनी पत्नी के स्टेज 4 ब्रेस्ट कैंसर से रिकवरी का किस्सा साझा किया। इसमें खुशी का इजहार कर सिद्धू ने रिकवरी का श्रेय पत्नी के खाने-पीने और जीवनशैली में लाए गए बदलाव को दिया। उन्होंने बताया कि चीनी और डेयरी प्रॉडक्ट्स छोड़ने और हल्दी व नीम के पत्ते खाने से पत्नी की जल्द रिकवरी हुई। सिद्धू के विडियो को सोशल मीडिया पर खूब शेयर किया गया।

बात रोचक है, लेकिन इस वीडियो ने मेडिकल जानकारों को फिक्रमंद कर दिया है। अब टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल कैंसर के इलाज के लिए देश में जाना-माना संस्थान है। इस मामले को लेकर टाटा मेमोरियल अस्पताल ने 262 कैंसर डॉक्टरों के दस्तखत वाला बयान जारी किया है। इसमें डॉक्टरों ने कहा है कि जिस इलाज की सत्यता की जांच नहीं की जा सकती, उस इलाज को अपनाने के बजाय लोग उसी तरीके का इस्तेमाल करें, जो जांचा-परखा है।
डॉक्टरों का संदेश है, शुरुआत में पता चलने से कैंसर ठीक हो सकता है। इसके लिए जांचे-परखे तरीकों में सर्जरी, रेडिएशन थैरपी और कीमोथैरपी शामिल हैं।’ कैंसर के इलाज में गुमराह करने वाले दावे किस कदर खतरनाक साबित हो सकते हैं, डॉक्टरों ने अपने बयान के जरिये इस ओर भी इशारा किया।

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सांइस के अनुसार

स्टेज 4 कैंसर रोग की विकसित अवस्था है। इसमें कैंसर कई अंगों तक फैल चुका होता है। ऐसी स्थिति में समय रहते और आधुनिक इलाज की आवश्यकता है। जिसमें सर्जरी, कीमोथैरपी, रेडिएशन थैरपी, इम्यूनोथैरपी और टारगेटेड थैरपी। इन उपायों से कैंसर को रोकने और रोगी की उम्र बढ़ाने में मदद मिलती है। वहीं, जब हल्दी, नीम जैसे भ्रामक उपायों से रोग ठीक करने के दावे किए जाते है,तब कई रोगी उससे प्रभावित होकर इलाज में देरी कर सकते हैं। ऐसा करने पर उनके बचने के आसार कम हो सकते हैं।

वहीं जब सिद्धू जैसे सेलेब्रिटी और जाने-माने लोग ऐसी बातें साझा करते हैं, तब उसका लोगों के बीच असर होता है। उनकी बात करोड़ों लोगों तक जाती है। उनसे लोग राय बनाते हैं और उनका लिए जाने वाले फैसलों पर असर होता है। इसका यह कतई मतलब नहीं है कि सिद्धू की नीयत ठीक नहीं है, लेकिन यह भी सच है कि उससे लोगों के बीच गलत संदेश जा सकता है। मुझे लगता है कि जो लोग सार्वजनिक जीवन में हों, उनका यह दायित्व बनता है कि वे साइंस के लिहाज से सही सूचनाएं लोगों के बीच पहुंचाए।

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