स्कूलों में बढ़ती आत्महत्याएं: “बचाओ हमारे बच्चों को!” अभिभावकों की पुकार, विशेषज्ञों ने बताई असली वजह

नई दिल्लीः छात्रों के आत्महत्या करने के मामलों को लेकर बढ़ते आक्रोश के बीच विशेषज्ञ ‘‘विद्यालयों को मानसिक स्वास्थ्य के अनुकूल’’ बनाकर सुधार किए जाने की मांग कर रहे हैं जबकि अभिभावक संघ ऐसे मामलों से जुड़े संस्थानों के ‘‘सरकारी अधिग्रहण’’ की मांग कर रहे हैं। विशेषज्ञों एवं अभिभावकों का जोर कुल मिलाकर ऐसे तंत्रगत बदलावों पर है जिनसे युवाओं के आत्महत्या के मामलों को रोका जा सके। कभी ‘‘अगला शाहरुख खान बनने’’ का सपना देखने वाले नयी दिल्ली स्थित एक स्कूल के 10वीं कक्षा के छात्र ने महीनों तक शिक्षकों द्वारा कथित रूप से प्रताड़ित किए जाने के बाद मंगलवार को राजेन्द्र प्लेस मेट्रो स्टेशन के प्लेटफॉर्म से छलांग लगा दी थी। इस घटना ने देशभर में बहस छेड़ दी है। कुछ लोग विद्यालयों को दोष दे रहे हैं जबकि कुछ अभिभावकों का पक्ष ले रहे हैं लेकिन मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ नेहा कृपाल का कहना है कि इस तरह का ध्रुवीकरण अनुचित है। उन्होंने जोर देकर कहा, ‘‘आत्महत्या की प्रवृत्ति की जिम्मेदारी हम सबकी है’’ जिसमें शिक्षक, अभिभावक, संरक्षक, स्टाफ एवं व्यापक समुदाय सभी शामिल हैं और कोई भी इससे स्वयं को अलग नहीं कर सकता। 

‘अमाहा हेल्थ एंड इंडिया मेंटल हेल्थ अलायंस’ की सह-संस्थापक नेहा कृपाल ने कहा, ‘‘पीटीए (शिक्षक अभिभावक संघ) और स्कूल एसोसिएशन को आत्महत्या की प्रवृत्ति से तंत्रगत और रोकथाम के स्तर पर निपटने के लिए मिलकर काम करने की जरूरत है। ऐसा बहुत कम होता है कि आत्महत्या करने का विचार अचानक आने पर कोई यह कदम उठाए। ऐसा करने वाले लोग कई चरणों से होकर गुजरते हैं और इन चरणों को मिथकों या धारणाओं के कारण अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है।’’

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उन्होंने कहा, ‘‘अचानक सदमे के कारण आत्महत्या संबंधी सार्वजनिक विमर्श समाज को जिम्मेदारी से अक्सर मुक्त कर देता है जबकि आमतौर पर इन घटनाओं से पहले चेतावनी के संकेत मौजूद होते हैं। इन संकेतों को समय रहते पहचानना और ऐसी प्रतिक्रिया देना अत्यंत महत्वपूर्ण है जो बच्चे के लिए सुरक्षित एवं मददगार हो।’’ पिछले कुछ सप्ताहों में ऐसे कई दर्दनाक मामले सामने आए हैं। दिल्ली की घटना के अलावा मध्य प्रदेश के रीवा में 11वीं कक्षा की 17 वर्षीय छात्रा ने यह आरोप लगाने के बाद आत्महत्या कर ली कि एक पुरुष शिक्षक ने उसके साथ मारपीट की। 

इस महीने की शुरुआत में जयपुर में नौ वर्षीय बच्ची ने अपने निजी स्कूल की चौथी मंजिल से छलांग लगा दी थी। कक्षा चार की इस छात्रा को कई महीनों तक स्कूल में कथित तौर पर लगातार प्रताड़ना झेलनी पड़ी थी जिसमें उसके सहपाठियों द्वारा अपशब्द कहे जाना भी शामिल है। विशेषज्ञों ने स्कूल जाने वाले बच्चों में आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ने की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा है कि विश्वभर में होने वाले आत्महत्या की घटनाओं के ‘‘एक-तिहाई मामले भारत में होते हैं और 15 से 29 वर्ष की उम्र के युवाओं में आत्महत्या अब मौत का प्रमुख कारण बन गई है।’’ 

‘होमकमिंग: मेंटल हेल्थ जर्नीज ऑफ रिजिलिएंस, हीलिंग एंड होलनेस’ पुस्तक की सह-लेखिका कृपाल ने मीडिया सहित सभी हितधारकों से अपील की कि वे केवल व्यक्तिगत घटनाओं के ग्राफिक विवरण देने तक सीमित नहीं रहें। उन्होंने जोर देकर कहा कि प्राथमिकता ‘‘तैयारी में तंत्रगत खामियों, मानसिक स्वास्थ्य सहायता और संस्थागत प्रतिक्रिया’’ होनी चाहिए। उनके प्रमुख सुझावों में से एक है-ऐसा कानून बनाना जिसके तहत ‘‘विद्यालयों का मानसिक स्वास्थ्य के अनुकूल होना’’ अनिवार्य किया जाए। 

क्लिनिकल मनोवैज्ञानिक जयन्ती दत्ता ने भी कहा कि उस प्रतिकूल माहौल पर ध्यान देने की जरूरत है जिसका बच्चों को सामना करना पड़ता है और शिक्षक स्वयं दबाव में होने के कारण उत्पीड़न के मामलों को अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘इन सभी स्कूलों में ‘काउंसलर’ और क्लिनिकल मनोवैज्ञानिक तो होते हैं लेकिन वे अक्सर हस्तक्षेप नहीं करते। अधिकतर शिक्षक ध्यान ही नहीं देते।… वे दबाव में होते हैं और उनके पास समय नहीं होता। स्कूल प्रशासन भी इस बात को नजरअंदाज करता है कि शिक्षकों के साथ क्या हो रहा है जिससे इन विद्यालयों में बहुत खराब माहौल बन जाता है।’’ 

दत्ता ने सचेत किया कि बच्चे अपने माता-पिता तक से मन की बात नहीं कह पाते जिससे वयस्कों पर उनका भरोसा कम हो जाता है और इसे उन्होंने बच्चे की मानसिक स्वास्थ्य यात्रा में ‘‘सबसे हानिकारक’’ कारक बताया। ‘दिल्ली पैरेंट्स एसोसिएशन’ की अध्यक्ष अपराजिता गौतम ने प्रणाली से उपजे हालात पर अपनी नाराजगी जताते हुए सीधे तौर पर विद्यालयों को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने विद्यालयों को ‘‘व्यवसायिक सोच पर आधारित और असंवेदनशील’’ बताते हुए कहा कि इनमें ‘‘गहरी जड़ें जमा चुकी कई खामियां’’ हैं। 

गौतम ने स्कूल प्रबंधनों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई किए जाने, विद्यालयों की मान्यता तुरंत रद्द किए जाने और सरकार द्वारा इनके अधिग्रहण की मांग की। उन्होंने सचेत किया कि सख्त कानून बनाए बिना और उन्हें कड़ाई से लागू किए बिना हालात में कोई बड़ा बदलाव संभव नहीं है। दिल्ली के छात्र की आत्महत्या के मामले में प्राथमिकी दर्ज किए जाने के बाद सेंट कोलंबाज स्कूल की प्रधानाचार्य सहित चार स्टाफ सदस्यों को निलंबित कर दिया गया है।

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