छठ महापर्व: बलिया में लाखों श्रद्धालुओं ने अस्ताचलगामी सूर्य को दिया अर्घ्य, घाटों पर उमड़ा आस्था का सागर

Chhath Puja In Ballia : लोक आस्था के महापर्व डाला छठ के तीसरे दिन सोमवार को पूरी भृगुनगरी आस्था और श्रद्धा से सराबोर हो उठी। धुंध और हल्की बदली के बीच लाखों व्रती महिलाओं ने अपने परिजनों के साथ छठ घाटों पर अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया। रूनकी-झुनकी बेटी मांगिला-पढ़ल पंडितवा... सुगउ के मरब धेनुष से सुगा गिरिहें मुरछाय... और बाट जे जोहे ला बटोहिया दौरा केकरा के जाय...। छठ महापर्व पर समूचा वातावरण छठ गीतों से गुंजायमान हो रहा है। ‘कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकल जाए। बलमा, बनल छै कहरिया, बहंगी घाट पहुंचाए...' व ‘पहिले पहिल हम कईनी, छठी मइया व्रत तोहार, करिहा क्षमा छठी मइया भूल-चूक गलती हमार...।’ इत्यादि छठ गीत हर घर से सुनाई दे रहे हैं।

सोमवार की सुबह से ही श्रद्धालु घरों में पूजन की तैयारी में जुटे थे। दोपहर बाद गाजे-बाजे, गीत-संगीत और उत्साह के बीच परिवार के पुरुष सदस्य व्रती महिलाओं के साथ सिर पर पूजन सामग्री से भरी ‘डाल दउरी’ रखकर गंगा तट की ओर रवाना हुए। लाल और पीले वस्त्रों में सजे श्रद्धालु छठ मैया के पारंपरिक गीत गाते हुए घाटों पर पहुंचे तो पूरा वातावरण भक्ति और उल्लास से गूंज उठा। निर्जला व्रत के बाद व्रती महिलाओं ने कमर भर पानी में खड़े होकर भगवान भाष्कर को पहला अर्घ्य दिया। व्रतियों के साथ उनके परिजनों ने भी घुटनों तक जल में उतरकर सूर्यदेव से परिवार की सुख-समृद्धि की कामना की।

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वहीं, सूर्यास्त के बाद लोग अपने-अपने घर वापस चले गये। रात भर जागरण करेंगे और मंगलवार को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य के बाद व्रती पारण करेंगे। अध्यापिका ममता यादव बताती हैं कि महापर्व छठ शुद्धि और आस्था की मिशाल है। यह पर्यावरण के संरक्षण का संदेश देता है। लोगों को समानता और सद्भाव का मार्ग दिखाता है। अमीर-गरीब सभी माथे पर पूजन सामग्री की टोकरी लेकर एक साथ घाट पहुंचते हैं। यह पर्व प्रकृति से प्रेम को दर्शाता है। सूर्य और जल की महत्ता का प्रतीक यह पर्व पर्यावरण संरक्षण का भी संदेश देता है। महापर्व का समापन मंगलवार तड़के उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ होगा। 

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