ऋषि सक्सेना ने सोनी सब के शो इत्ती सी खुशी में जुनूनी प्रेमी के रोल पर कहा “मेरा किरदार प्यार, डर और हताशा से प्रेरित है”

मुंबई, नवंबर 2025 : सोनी सब का इत्ती सी खुशी अपने अद्भुत पारिवारिक बंधनों की दिल छू लेने वाली कहानी के साथ दर्शकों के बीच गहरा संबंध बना रहा है। यह शो अन्विता (सुम्बुल तौकीर खान) की कहानी सुनाता है, एक ऐसी युवा महिला जिसने हर तूफ़ान में अपने परिवार की रक्षा की है — पिता सुहास (वरुण बडोला) की बुरी लत से निपटने से लेकर अपने भाई-बहनों को ख़तरे से बचाने तक। उसके भावनात्मक संसार के केंद्र में दो अलग-अलग ताकतें खड़ी हैं: विराट (रजत वर्मा), जिसकी खामोश मोहब्बत उसकी हमेशा से ताकत रही है, और संजय (ऋषि सक्सेना), जिसकी छिपी हुई चालबाज़ियाँ अब सब कुछ हिलाने के कगार पर हैं।

एक खुले दिल से हुई बातचीत में ऋषि सक्सेना ने संजय की जटिल मानसिकता में उतरने और उस किरदार को निभाने के बारे में खुलकर बातचीत की — एक ऐसा किरदार जो ग्रे रंगों में काम करता है…

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संजय कोई साधारण खलनायक नहीं है — आपके नजरिए में उसे इतना परतदार और जटिल क्या बनाता है?

इंसान अलग-अलग हालात में अलग प्रतिक्रिया देते हैं। कोई भी पूरी तरह काला-सफेद नहीं होता। संजय ऐसा ही है। उसकी कमियाँ, आवेग, कमजोरियाँ और भावनाएँ उसे वास्तविक बनाती हैं। उसे “खलनायक” नहीं लिखा गया है; वह किसी ऐसे इंसान की तरह है जो प्यार, डर और हताशा से प्रेरित है। यही बात किरदार को कई परतें देती हैं।

अन्विता के प्रति उसका प्यार धीरे-धीरे जुनून में बदल जाता है। आपने उस भावनात्मक बदलाव को कैसे निभाया?

यह परिवर्तन लेखन में खूबसूरती से बुना गया था, इसलिए मेरे लिए यह धीरे-धीरे जलने वाली आग को महसूस करना था। मैंने बस उस ढांचे का पालन किया जो लेखक ने बनाया था और हमारे डायरेक्टर के विजन पर भरोसा रखा। यह बदलाव ऑर्गेनिक महसूस होना था। किरदार पर स्पष्टता होने से इसे अंदर से महसूस कर निभाना आसान रहा।

विराट का ब्लैकमेल करना एक बड़ा मोड़ है। उस तीव्रता की तैयारी में क्या-क्या शामिल था?

हर सीन की अपनी अलग अप्रोच चाहिए होती है, और इस सीन के लिए मैं चाहता था कि परफॉर्मंस रॉ लगे और घिसा-पटा न लगे। वही ईमानदारी उस पल काम आई। साथ ही, रजत (विराट) के साथ मेरी ऑन-स्क्रीन केमेस्ट्री ने भी उस टकराहट में उतरने को आसान कर दिया। जब आपका सह-अभिनेता आपको इतना कुछ देता है, तो आधी लड़ाई जीत चुकी होती है।

इस शादी वाले ट्रैक में, आप सोचते हैं संजय अपनी मंशा पूरी करने के लिए कितनी दूर जा सकता है?

संजय सचमुच मानता है कि वह जो कुछ भी कर रहा है, वह अन्विता के लिए कर रहा है। उसके मन में वह उसे बचा रहा है, सही कर रहा है। जब कोई इतना दृढ़ता से ऐसा महसूस करता है, तो उसके लिए दूर तक जाने की कोई सीमा नहीं होती। तो हाँ, वह उतना गहराई तक और उतना दूर तक जाएगा जितना उसे आवश्यक लगे, क्योंकि उसके लिए उसकी मंशाएँ सही ठहरती हैं।

एक अभिनेता होने के नाते, ऐसे ग्रे-ज़ोन वाले किरदार निभाने में आपको सबसे ज़्यादा क्या उत्साहित करता है, बनिस्बत सीधे-सादे नेगेटिव रोल के?

मुझे परफॉर्मंस को रियल और रॉ रखना पसंद है, और संजय मुझे बिल्कुल वही करने का मौका देता है। ऐसे किरदार भारतीय टीवी पर दुर्लभ हैं। वह अनिश्चित, भावुक, दोषपूर्ण और ईमानदार है, जो उसे निभाने के लिहाज़ से बेहद रोचक बनाता है। खोजने के लिए बहुत जगह रहती है, और यह किसी भी अभिनेता के लिए रोमांचक होता है।

क्या संजय जैसे भावनात्मक रूप से उफनते किरदार को निभाने का असर ऑफ-सेट भी होता है? इतने भरे-पूरे सीन के बाद आप कैसे “स्विच-ऑफ” करते हैं?

ईमानदारी से कहूँ तो यह सिर्फ प्रोफेशनलिज़्म है। सीन खत्म होते ही मैं स्विच-ऑफ हो जाता हूँ और आगे बढ़ जाता हूँ। यह अलगाव ज़रूरी है — यह आपको जड़ से बांधता है और अगले दिन ताज़ा होकर लौटने में मदद करता है।

क्या ऐसे किसी किरदार की मनोस्थिति में उतरने के लिए आप कोई खास तकनीकें या तैयारी के तरीके अपनाते हैं?

मैं कोशिश करता हूँ कि किरदार के मकसद सरल और कहानी के अनुरूप हों। जब इरादा स्पष्ट हो, तो मानसिकता स्वाभाविक रूप से साथ आ जाती है। और उन दिनों जब मैं भटक जाऊँ — जो होता है — मुझे एक शानदार टीम मिली है जो मुझे फिर से संजय के हेडस्पेस में लाने में मदद करती है।

इत्ती सी खुशी देखें सोमवार से शनिवार, रात 9 बजे केवल सोनी सब पर

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