UP News: अनुकूल माहौल और बिछड़े साथियों की तलाश में पीलीभीत टाइगर रिजर्व पहुंच रहे नेपाली हाथी

पीलीभीत। नेपाल के शुक्लाफांटा सेंचुरी से हर साल आने वाले जंगली हाथियों का पीलीभीत टाइगर रिजर्व से दशकों पुराना संबंध है। कभी अनुकूल वातावरण तो कभी अपने झुंड से बिछड़ने वाले साथियों की तलाश, यही वजह है कि हाथी समय-समय पर सीमा पार कर यहां तक चले आते हैं। हाल में भी 20 से अधिक हाथियों का झुंड शारदा नदी पार कर टाइगर रिजर्व क्षेत्र में पहुंचा था।

दुर्भाग्य से इस झुंड के एक हाथी ने ग्रामीण क्षेत्र में एक बुजुर्ग को कुचलकर मौत के घाट उतार दिया। विशेषज्ञों के मुताबिक हाथियों के आक्रामक होने की बड़ी वजह उनके पुराने कॉरिडोर में लगातार बढ़ती इंसानी दखलंदाजी है। अब टाइगर रिजर्व प्रशासन ने निगरानी बढ़ाने के लिए स्टाफ तैनाती की तैयारी शुरू कर दी है।

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दशकों पुराना कॉरिडोर, अब इंसानी कब्ज़े से प्रभावित

नेपाल और पीलीभीत के बीच लग्गा-भग्गा से किशनपुर सेंचुरी तक फैला कॉरिडोर कभी हाथियों और गैंडों के सुरक्षित आवागमन का प्राकृतिक रास्ता था। पहले की व्यवस्था में अगर हाथी कई दिनों तक वापस नहीं लौटते थे, तो नेपाल के वनकर्मी घोड़े या हाथियों पर सवार होकर उन्हें वापस ले जाते थे। लेकिन अब कॉरिडोर में बस्तियाँ बस गईं, खेती शुरू हो गई और पेड़ काट दिए गए। परिणामस्वरूप हाथी रास्ता भटकते हैं, गुस्से में आते हैं और जनहानि की घटनाएं होती हैं।

हाथियों के आने की बड़ी वजहें

  • पीलीभीत टाइगर रिजर्व में भोजन और जल की भरपूर उपलब्धता
  • रोहणी (सिंदूर) के पेड़ों की अधिकता, जो उनका पसंदीदा आहार है
  • जंगलों के बाहर होने पर हाथियों को गन्ना खेतों में मिलता है, इसलिए वे गांवों की ओर बढ़ जाते हैं
  • झुंड से बिछड़े हाथी साथियों की तलाश में अक्सर इधर आते हैं

टाइगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर मनीष सिंह के अनुसार, हाथियों के प्रवेश के बाद लगातार निगरानी की जा रही है ताकि किसी भी तरह की जनहानि न हो। पिछले साल भी करीब 5 हाथियों का झुंड कई दिन रुका था, जिसे स्टाफ की टीम लगाकर वापस खदेड़ना पड़ा था।

ग्रामीण दहशत में, वन विभाग अलर्ट

इन दिनों कलीनगर तहसील क्षेत्र में हाथियों की बढ़ती आवाजाही से ग्रामीण रातभर जागकर पहरा दे रहे हैं। सोमवार की रात हालांकि हाथियों की हलचल नहीं दिखी, पर वन विभाग की टीमें लगातार निगरानी में जुटी हैं।

कॉरिडोर बचाना ज़रूरी

वन्यजीव विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक हाथियों का पुराना रास्ता मुक्त और सुरक्षित नहीं होगा, तब तक ऐसे हादसे रुक पाना मुश्किल है। अवैध कब्जे और निर्माण हटाने को लेकर कानूनी प्रक्रिया चल रही है, लेकिन वन विभाग अभी सीमित कार्रवाई में बंधा है।

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