शिक्षा से सशक्त होती बालिका, बालिका से सशक्त होता समाज – यही है असली परिवर्तन की शुरुआत

उत्तर प्रदेश, 14 नवंबर 2025 हर बालिका की शिक्षा, समाज की प्रगति की नींव है। जब लड़की पढ़ती है, तो उसका आत्मविश्वास ही नहीं, पूरी दुनिया बदल जाती है। 2008 की बात है। राजस्थान के एक छोटे से गाँव में, एक नौ साल की बालिका मिली नाम था शोभा। उसकी बड़ी-बड़ी आँखों में जिज्ञासा थी और चेहरे पर आत्मविश्वास की चमक। *जब मैंने पूछा , “शोभा, क्या तुम स्कूल जाती हो?” उसने मुस्कुराकर कहा, “हाँ!” लेकिन स्कूल के रजिस्टर में उसका नाम नहीं था। दरअसल, वह रोज़ अपने भाई के साथ स्कूल तक जाती और बाहर बैठकर उसे पढ़ते हुए देखती थी। उसके लिए यही “स्कूल जाना” था।

शोभा के पिता दौला राम को लगता था कि बेटों को पढ़ाना ज़रूरी है, बेटियों को नहीं। लेकिन जब उन्होंने देखा कि उनकी बेटी कितनी लगन से सीखना चाहती है, तो उनका नज़रिया बदल गया। आज वही पिता कहते हैं, “हर किसी को स्कूल जाना चाहिए, क्योंकि बिना शिक्षा के इंसान शोषित होता है।”

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आज इंसान मंगल ग्रह तक पहुँच चुका है, लेकिन हम अब भी हर बालिका को स्कूल तक नहीं पहुँचा पाए हैं। दुनिया में अब भी करीब 13 करोड़ 30 लाख बालिकाएँ शिक्षा से वंचित हैं । भारत में भी लाखों बालिकाएं या तो स्कूल जाती ही नहीं या बीच में पढ़ाई छोड़ देती हैं।

गरीबी, स्कूल की दूरी, बाल विवाह, घरेलू ज़िम्मेदारियाँ और सामाजिक परंपराएँ ये सब उनकी राह में दीवारें बन जाती हैं। आँकड़े बताते हैं कि बिना शिक्षा के बालिकाओं की 18 साल से पहले शादी होने की संभावना 16 गुना अधिक होती है। वहीं, शिक्षा से दूर रहना उसे हिंसा, आर्थिक निर्भरता और असमानता के घेरे में बाँध देता है।

लेकिन जब एक बालिका शिक्षित होती है, तो पूरी कहानी बदल जाती है। शिक्षित बालिकाएं जल्द विवाह नहीं करती, अपने बच्चों को स्वस्थ रखती हैं, परिवार की आमदनी बढ़ाती हैंऔर अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठाती हैं। शिक्षा उनके जीवन में एक नई आज़ादी जोड़ देती है।

इसी विश्वास के साथ हमने एजुकेट गर्ल्स की स्थापना की ताकि हर बालिका को स्कूल का रास्ता मिले। हमारी “टीम बालिका स्वयंसेवक” गाँव-गाँव जाकर उन बालिकाओं की पहचान करती है जो शिक्षा से वंचित हैं, और उनके परिवारों को समझाकर उन्हें शिक्षा से जोड़ती है। संस्था एआई और डेटा एनालिटिक्स की मदद से यह भी पता लगाती है कि किन गाँवों में सबसे अधिक हस्तक्षेप की ज़रूरत है। एक अध्ययन के अनुसार, भारत के केवल 5% गाँवों में देश की 40% शिक्षा से वंचित बालिकाएं रहती हैं। संस्था अपने अथक प्रयासों से आज 30,000 से अधिक गाँवों में कार्यरत है, 55,000+ टीम बालिका स्वयंसेवक जुड़े हैं, और 20 लाख से अधिक बालिकाओं को शिक्षा से जोड़ा गया है। ये आंकड़े केवल सफलता की कहानियाँ नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन की जीवंत मिसाल हैं।

लड़कियों की शिक्षा केवल समानता का प्रश्न नहीं, यह विकास का इंजन है। जब लड़कियाँ शिक्षित होती हैं, तो वे बेहतर निर्णय लेती हैं, सामाजिक बदलाव में भाग लेती हैं और आने वाली पीढ़ियों को मजबूत बनाती हैं। किसी भी देश की तरक्की तभी संभव है जब उसकी आधी आबादी को बराबर का अवसर मिले। शिक्षा वह चाबी है जो गरीबी, पितृसत्ता और असमानता की सबसे मज़बूत जंजीरों को तोड़ सकती है।

लगभग 20 वर्षों तक बालिकाओं की शिक्षा के लिए काम करते हुए मैंने आज तक कोई ऐसी बालिका नहीं देखी जिसने कहा हो “मैं घर पर रहना चाहती हूँ” , “मैं मवेशी चराना चाहती हूँ” या “मैं बाल विवाह करना चाहती हूँ।” हर बालिका जिसे मैं मिली, उसने सिर्फ एक ही बात कही “मैं स्कूल जाना चाहती हूँ।”

इसी भावना को हमारी समुदायिक स्वयंसेविका नगिना बानो ने अपने जीवन से साबित किया है। कभी बाल विवाह की शिकार रही नगिना बानो को उनके परिवार ने त्याग दिया था। लेकिन उन्होंने अपनी शिक्षा को अपनी ताकत बनाया। शिक्षा ने न सिर्फ उन्हें जीने का साहस दिया, बल्कि उसके बच्चों के भविष्य को भी रोशनी दी।

आज, जब नगिना बालिकाओं की शिक्षा की प्रबल समर्थक हैं, तो वह कहती हैं, “मेरी शिक्षा ही एकमात्र मेरी अपनी चीज़ है। कोई इसे मुझसे नहीं छीन सकता, न बाढ़, न अकाल, न कोई आदमी। मेरी शिक्षा मेरे साथ मेरी अंतिम सांस तक रहेगी।”

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