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स्वच्छता की तस्वीर
स्वच्छता किसी भी सभ्य समाज की तस्वीर होती है, जो उस समाज के लोगों के रहन-सहन व सभ्यता की परिचायक होती है। प्रधानमंत्री द्वारा भी समय-समय पर स्वच्छता के संदेश दिए जाते रहें हैं। सरकार द्वारा हर वर्ष देशव्यापी स्वच्छता सर्वेक्षण होता है जिसमें शहरों को स्वच्छता के आधार पर रैकिंग दी जाती है। इंदौर ने अपनी स्वच्छता की परंपरा को सातवीं बार शीर्ष पर बनाए रखा है।
बीते सात वर्षों से इंदौर द्वारा जो स्वच्छता का संदेश दिया जा रहा है उसमें न केवल वहां के नगर निकाय की,बल्कि उनके प्रशासकों की भी प्रतिबद्धता सराहनीय है। साथ ही वहां की जनभागीदारी भी प्रशंसनीय है, क्योंकि कोई भी सामाजिक कार्य या अभियान जनभागीदारी के बिना संभव नहीं है। वहां के लोगों ने स्वच्छता का जो संदेश अपनाया है, उसे देश के अन्य शहरों के लोगों को भी ग्रहण करना चाहिए।
अब सवाल उठता है कि इंदौर का स्वच्छता मॉडल पूरे देश में क्यों नहीं अपनाया जा सकता है? यहां एक बात गौर करने वाली और है कि स्वच्छ भारत अभियान को शुरू हुए लगभग 10 वर्ष का समय हो चुका है, इसके बाद भी देश में स्वच्छता का वह स्तर नहीं है, जो होना चाहिए था। देश की राजधानी भी इस मामले में पीछे है।
नई दिल्ली टॉप-5 में अपनी जगह नहीं बना सकी है। जबकि हाल में संपन्न जी-20 सम्मेलन के दौरान दिल्ली चमकी हुई दिखाई दी थी। यहां हमको यह भी समझना होगा कि नई दिल्ली देश की राजधानी है एेसे में उसकी जिम्मेदारी बढ़ जाती है। यहां यह कहकर मुंह नहीं मोड़ा जा सकता है कि वहां संसाधनों की कमी होगी।
देश की राजधानी में संसाधनों की कमी का बहाना किसी के भी गले नहीं उतर सकता है। इंदौर की स्वच्छता की सबसे अहम बात यह है कि शहर से निकले वाले कचरे का निस्तारण त्वरित व वैज्ञानिक तौर पर किया जाता है। यहां कचरे से गैस तैयार की जाती है। उसी गैस से शहर में सीएनजी बसों का परिचालन होता है।
कचरे से गैस बनाने के लिए इंदौर में एशिया का सबसे बड़ा प्लांट है। देश को इंदौर के इस स्वच्छता मॉडल को अपनाना चाहिए ताकि देश स्वच्छता के मामले में दुनिया में अपनी चमक बिखेरे।