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भारत की भूमिका

दुनिया की केवल दस प्रतिशत वैश्विक आबादी, संसार की 84 प्रतिशत धन-संपदा पर काबिज है। ऐसे में अगर दुनिया में आर्थिक अलगाव देखने को मिल रहा है, तो फिर अचरज किस बात का है? विश्व इस समय एक नई बहुपक्षीय विश्व व्यवस्था का उदय देख रहा है। हाल ही में जकार्ता में आयोजित पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन और दिल्ली में आयोजित जी 20 शिखर सम्मेलन से यह परिदृश्य स्पष्ट हो गया है कि नई विश्व व्यवस्था के रूपांतरण में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका है।
भारत साझा हितों एवं चुनौतियों को उज़ागर करके और समावेशी एवं व्यावहारिक समाधान प्रस्तावित करके विकसित और विकासशील देशों के बीच की खाई को पाटने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। विश्लेषकों के मुताबिक यूक्रेन-रूस युद्ध से वैश्विक स्तर पर अस्थिरता के जो हालात पैदा हुए हैं और उनकी वजह से वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में रुकावटें आ गई हैं। युद्ध ने वैश्विक आर्थिक गतिशीलता के लचीलेपन और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पारस्परिक आर्थिक निर्भरता के भविष्य को सवालों के घेरे में ला दिया है। इस युद्ध ने दुनिया भर की कंपनियों को कुशलता एवं सुरक्षा के बीच संतुलन का फिर से मूल्यांकन करने के लिए मज़बूर कर दिया है।
इसकी वजह से यूक्रेन और रूस के अलावा पूरी दुनिया के श्रम बाज़ार में उथल-पुथल मच गई है और सामाजिक व्यवस्था पर भी असर पड़ा है। आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यवधान के कारण अब वैश्विक की जगह क्षेत्रीय सोर्सिंग पर निर्भरता बढ़ी है। निसंदेह इन हालातों में वैश्वीकरण को लेकर पुराने दृष्टिकोण के स्थान पर नई सोच को अपनाना जरूरी हो जाता है।
भारत को उन चुनौतियों के बारे में नए सिरे से सोचना होगा, जो नई विश्व व्यवस्था की वजह से हमारे समक्ष खड़ी हो रही हैं। भारत को चाहिए कि वो इन चुनौतियों को पहले से समझ कर उनके प्रति अपनी प्रतिक्रिया को सावधानीपूर्वक पहले ही तैयार कर ले। उम्मीद है कि भारत वो साहस जुटा सकेगा, जिसकी मदद से नए प्रयास होंगे, और हमारी दुनिया में आम सहमति के नए पथ खुलने का मार्ग प्रशस्त होगा।